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________________ AAAAA वैशाली में साम्राज्यविरोधी भावना "इससे आगे के समाचार का पता मैने लगा लिया है नाना जी ।" "वह क्या है बेटा ।" "वह बडा करुणाजनक है।" "क्या उन पर और भी भारी विपत्ति आई ?" "जी हाँ | मेरी माता ने अपने शील की रक्षा करते हुए आत्मघात करके प्राण दे दिये।" इस पर राजा चेटक एकदम चौक कर बोले "हाय । क्या प्यारी बेटी धारिणी का प्यारा मुख अब मुझे देखने को नही मिलेगा ?" और यह कहकर राजा चेटक शोक करने लगे। महारानी सुभद्रा तो इस समाचार को सुनकर फूट-फूट कर रोने लगी। दृढवर्मा भी उस समय अपने प्रॉसू न रोक सका. स्वस्थ होने पर राजा चेटक बोले "अच्छा फिर चन्दनबाला का कुछ पता चला ?" "उसके सबन्ध मे मेरे चर अभी-अभी कुछ हर्ष-विषाद मिश्रित सवाद कौशाम्बी से लाये है।" "हर्ष विषाद दोनो से ही मिश्रित ?" "जी नाना जी | उस रथवान ने बहिन चन्दनबाला को कौशाम्बी के बाजार मे धनावा नामक एक धर्मात्मा सेठ के हाथ दासी के समान बेच दिया।" "हाय । मेरी प्यारी धेवती दासी के समान बेची गई " यह कहकर महारानी सुभद्रा फिर विलाप करने लगी। राजा चेटक बोले "फिर क्या हुआ दृढवर्मा " "सेठ धनावा की सेठानी मलादेवी चन्दनबाला से बहत द्वेष करती थी। एक दिन सेठ तीन दिन के लिये बाहिर गया तो मूलादेवी ने उसके केश कटवा कर उसके सारे वस्त्र उतार कर उसे केवल एक कच्छा पहिनाया। फिर उसके हाथो मे हथकडियाँ तथा पैरो मे बेडियॉ डलवा कर उसे एक ऐसे भौरे मे बन्द कर दिया, जहाँ से कितना ही चिल्लाने पर भी उसकी आवाज सुनाई न दे।" १६३
SR No.010589
Book TitleShrenik Bimbsr
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekhar Shastri
PublisherRigal Book Depo
Publication Year1954
Total Pages288
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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