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________________ वैशाली में साम्राज्यविरोधी भावना मगध की गद्दी पर बिम्बसार के बैठने तथा मगव द्वारा वैशाली गणतत्र के गणपति की पुत्री से विवाह की इच्छा प्रदर्शित करने का लिच्छवियो के मन पर अत्यन्त विपरीत प्रभाव पडा । वह बिम्बसार को साम्राज्याकाक्षी तथा गणतन्त्र का शत्रु मानने लगे। राजा शतानीक द्वारा अग के राजा दधिवाहन के राज्य के नाश का भी वह बिम्बमार को ही प्रधान कारण समझते थे। उनका कहना था कि बिना बिम्बसार के उकसाए शतानीक स्वय जैनी होते हुए अपने सगे साढ़ के राज्य पर कभी आक्रमण न करता । वैशाली का गणतत्र पहिले शतानीक तथा दधिवाहन दोनो से समान प्रेम मानता था, क्योकि वह दोनो ही गरापति राजा चेट्रक के जामाता थे, किन्तु चम्पा के पतन के बाद उसकी सहानुभूति शतानीक की अपेक्षा दधिवाहन के पुत्र दृढवर्मा की ओर अधिक हो गई। इसके अतिरिक्त उस आपत्ति के समय दृढवर्मा ने चम्पा से भागकर वैशाली ही में अपने नाना के पास शरण भी ली थी। आन्तरिक सम्बध के अतिरिक्त लिच्छवी लोग दृढवर्मा को शरणागत मान कर भी उसको रक्षा करने के लिये दृढनिश्चय थे। दृढवर्मा के सम्बध मे प्राय परामर्श राजा चेटक के राजमहल मे ही हुआ करता था, जहा उसका अप्रतिहत प्रवेश था। एक बार राजा चेटक अपने महल मे रानी सुभद्रा के पास बैठे हुए कुछ सोच-विचार मे लीन थे कि दृढ वर्मा ने पाकर उनसे कहा __ "नाना जी ! आपने बहिन चदनबाला तथा मेरी माता जी के विषय मे कुछ सुना?" "यह तो पता लग गया बेटा । कि वह दोनो युद्ध के समय एक भौरे में छिप गई थी, जहा से राजा शतानीक का रथवान उनको ढूंढ कर अपने साथ कौशाम्बी ले गया।"
SR No.010589
Book TitleShrenik Bimbsr
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekhar Shastri
PublisherRigal Book Depo
Publication Year1954
Total Pages288
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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