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________________ ܕ ܕ — 2390 कोशल - राजकुमारी से सम्बन्ध अर्द्धरात्रि का समय है । राजगृह के सभी निवासी निद्रादेवी की गोद मे जा चुके है । किन्तु सम्राट् विम्वसार के शयनकक्ष से प्रकाश की रेवा अभी तक बाहर आ रही है । दो प्रहरी द्वार से लगभग पचास गज की दूरी पर बैठे हुए ऊघ रहे है । कक्ष के भीतर बहुत बढिया सजावट है। दीवारो पर अनेक प्रकार के देवी-देवताओ के हाम विलास के चित्र लगे हुए । एक ओर एक विस्तृत पलग विछा हुआ है । बीचो-बीच दो-तीन पीठ पडे हुए हैं, जिन पर बैठे हुए दो 'युवक आपस मे वार्तालाप कर रहे है । दोनो की आयु लगभग बीसपच्चीस वर्ष से अधिक नही है । उनमे से एक बोला "मित्र, तुमने कल कोशल के कुल पुरोहित तथा नाई को वापिस श्रावस्ती क्यो नही जाने दिया ? क्या तुम उस समय यह भूल गए थे कि मुझे महाराज प्रसेनजित् से घृणा है "मुझे सब कुछ स्मरण था सम्राट् ! मैने उनको जानबूझकर रोका है । मैं मगध तथा कोशल के बीच कई वर्ष से चलने वाले शीतयद्ध को प्रकट युद्ध का रूप देना नही चाहता था ।" " तो उसको आप किस प्रकार रोक लेंगे महामात्य 1 " सम्राट् आप जानते हैं कि वर्षकार का कोई कार्य गहन राजनीति से शून्य नही होता । मै कोगल तथा मगध की शत्रुता को समाप्त करना चाहता हू "वह किस उद्देश्य से ?" I" I "सुनिये महाराज ! आप देखते है कि मगध के चारो ओर हमारे शत्रु ही शत्रु है । उत्तर मे हमारा सबसे प्रबल प्रतिद्वंद्वी वैशाली गणतन्त्र है । यद्यपि गणतन्त्रो की साम्राज्य बढाने की कामना नही हुआ करती, किन्तु वह एकतत्र शासन प्रणाली के शत्रु होते है और सदा इस बात के लिये यत्नशील रहा करते हैं कि ܙܕ २७ बु
SR No.010589
Book TitleShrenik Bimbsr
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekhar Shastri
PublisherRigal Book Depo
Publication Year1954
Total Pages288
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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