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________________ गौतम सिद्धार्थ तथा बिम्बसार भोजन रखवा दिया था, और उन्होने उन सभी को खाया भी, किन्तु उन्होने किसी खाद्य पदार्थ पर लेशमात्र भी अपनी रुचि अथवा, अरुचि को प्रकट न किया। उनके भोजन कर चुकने पर सम्राट ने उनसे कहीं सम्राट -कुमार | आपने अपने प्यारे माता-पिता, राजसम्पदा, प्राणप्यारी पत्नी और छोटे से दुधमुहे बच्चे को किस प्रकार छोड दिया? गौतम-जिस वस्तु को कभी न कभी विवश होकर अनिवार्य रूप से छोडना पडे उसे स्वय ही अपने आप छोड देने में बुद्धिमानी है सम्राट् ! सम्राट-मै आपका अभिप्राय नहीं समझा कुमार । गौतम-बात बिल्कुल स्पष्ट है सम्राट् | सासारिक भोगो से न तो कभी मन भरता है और न कोई उनको सदा ही अपने पास रख सकता है । मृत्यु प्रत्येक वस्तु का वियोग करा देती है। फिर नाशवान् वस्तुओ का त्याग करके ऐसी वस्तु प्राप्त करने का यत्न क्यो न किया जावे जो कभी नष्ट न हो और जिसको कभी भी छीना न जा सके । सम्राट-किन्तु क्या आप उस नित्य वस्तु को प्राप्त कर चुके ? . गौतम-नही मम्राट् । अभी मुझे इसमे सफलता प्राप्त नहीं हुई। मैं बारम्बार यत्न कर रहा हूँ, किन्तु अभी ठीक मार्ग का पता नही चला । यद्यपि मुझे निकट भविष्य में ही सफलता प्राप्त करने की पूर्ण आशा है। सम्राट्-किन्तु इसका क्या प्रमाण है कि आपका समस्त प्रयत्न मृगमरीचिका मात्र सिद्ध न होगा? गौतम-इसका प्रमाण तो सफलता के अतिरिक्त और कुछ भी नहीं हो सकता। सम्राट-तब तो कुमार इसका केवल यही अर्थ हुआ कि आप अभी तक भी अधेरे मे ही भटक रहे है। गौतम-मै आपको ऐसी बात मान लेने से रोक नहीं सकता। सम्राट-किन्तु कुमार ! मुझे आपके सुन्दर रूप, निर्दोष यौवन, अल्प अवस्था तथा अलौकिक गुणो को देखकर बारम्बार हृदय मे वेदना होती है। आप तपश्चरण के इस मार्ग का परित्याग कर दे। मैं अपना समस्त १५३
SR No.010589
Book TitleShrenik Bimbsr
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekhar Shastri
PublisherRigal Book Depo
Publication Year1954
Total Pages288
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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