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________________ श्रमिक बिम्बसार कि क्या मुझ को भी एक बार इसी प्रकार वृद्ध बनना पडेगा ? तब क्या जीवन मे कोई रस रह जावेगा ? इस प्रकार विचार करते-करते उनको नीद आ गई । अगले दिन प्रात होने पर कुमार को फिर उसी चिन्ता ने आ घेरा । उन्होने भोजन किया, सगीत सुना और दिन के सभी कार्यो को नित्य के समान किया, किन्तु उनके मन में यह विचार चलता ही रहा । रहा था। रोगी अपराह्न होने पर नित्य के समान वह अपनी गाडी मे बैठकर फिर घूमने चले । वह सडक को देखते जाते थे और उनके नेत्र उसी वृद्ध को ढूढ रहे थे । वह नगर के बाहर निकले तो एक गाव वाला अपने रोगी पिता को एक बैलगाडी मे डालकर नगर के किसी वैद्य को दिखलाने जा के शरीर मे असह्य पीड़ा थी और वह इतने जोर से कराह रहा था कि सुनने वालो का ध्यान उसकी ओर बरबस खिंच जाता था । राजकुमार सिद्धार्थ की दृष्टि जो उस रोगी पर गई तो उनके मन मे उसका समाचार जानने की इच्छा प्रबल हो उठी । बह बहुत समय तक उसके सम्बन्ध मे सोचते रहे और जब वह कुछ भी निश्चय न कर पाए तो साथ मे बैठे हुए अमात्य से बोले-— "आर्य ! बैलगाडी मे कराहने वाला यह पुरुष कौन है 'कुमार | यह रोगी है ।" " इसको रोग किस प्रकार हो गया, अमात्य " कुमार | शरीर मे रोग तो हुआ ही करते है । जैसा कि कहा भी है कि 'शरोर व्याधिमन्दिरम्' अर्थात् शरीर रोगो का घर है । कुमार इस उत्तर को सुनकर और भी सोच में पड़ गए । अब उनका जी' टहलने से फिर उचट गया और उन्होने अपने सेबको को वापिस लौटने क आज्ञा दी । घर आकर भी उनको उस रोगी का ही ध्यान बना रहा । वह सोचते थे कि "क्या सब प्राणी इसी प्रकार रोगी होते है ? मुझको भी कभी रोगी होना पडेगा ? वृद्धावस्था और रोग की वास्तविकता है ? इत्यादि इत्यादि ।” क्या इसी प्रकार यही क्या जीवन इसी प्रकार के विचारों में उनकी रात निकल गई । प्रात काल हो जाने पर भी उनके मन से वह विचार न निकले । उन्होने भोजन किया, शमन किया " ܙ ܕ
SR No.010589
Book TitleShrenik Bimbsr
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekhar Shastri
PublisherRigal Book Depo
Publication Year1954
Total Pages288
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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