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________________ श्रेणिक विम्बसार से जल कर कामदेव ही फिर जी उठा हो। उनके चारो ओर अनेक दासिया अपने हाथो मे चवर लिये हुए ऐसी जान पडती है, जैसे पृथ्वी की देविया कामदेव की पूजा करने आई हो। वहाँ की रत्नमय पृथ्वी मे पड़ा हुआ सम्राट का प्रतिबिम्ब ऐसा दिखलाई दे रहा है, जैसे पृथ्वी ने उनको उनकी भक्ति के ही कारण अपने हृदय मे स्थान दिया हो। सम्राट् से थोडे नीचे उनके दाहिनी ओर एक सिहासन पर मगध-महामात्य वर्षकार बैठा हुआ है। उसके बाई ओर मगध के प्रधान सेनापति भद्रसेन बैठे हुए है। राजसभा मे अनेक माडलिक राजा, सामत तथा राजदूत बैठे हुए है। इस समय व्यावहारिक महाराज के सम्मुख कुछ आवश्यक पत्र उपस्थित करके उन पर सम्राट् की आज्ञाएँ ले रहा है। इस कार्य के समाप्त हो जाने पर महामात्य वर्षकार ने सम्राट् से कहा वर्षकार-राजकुमार अभय की अत्यन्त विलक्षण प्रतिभा के समाचार मिले है सम्राट् । ऐसी विलक्षण बुद्धि तो बडे-बडे विद्वानो मे भी नहीं होती। उन्हे शीघ्र ही यह बुलवाना चाहिये। सम्राट-तुम्हारा कथन ठीक है, वर्षकार ! मै भी कुमार को यहाँ बुलवाने के सम्बन्ध मे ही विचार कर रहा था, किन्तु कुमार के यहाँ बुलाने का ढग भी मै ऐसा विलक्षण रखू गा कि उसमें कुमार को अपनी बुद्धि की एक और परीक्षा देनी होगी। अच्छा, नन्दिग्राम भेजने के लिये एक दूत को बुलवाओ। ___महाराज के यह कहते ही एक दूत ने आगे बढकर महाराज से निवेदन किया दूत-मै नन्दिग्राम जाने के लिये उपस्थित हूँ महाराज । सम्राट-तुम अभी नन्दिग्राम चले जाओ। वहाँ जाकर तुम कुमार अभय से मिल कर उनसे कहना कि आपको महाराज ने बुलाया है, किन्तु उन्होने आपको आज्ञा दी है कि आप न तो मार्ग से आवे और न उन्मार्ग से आवे, न दिन मे आवे, न रात मे आवें, भूखे न आवे, अफरे पेट भी न आवे, न किसी सवारी मे आवे और न पैदल ही आवे, किन्तु गिरित्रज नगर शीघ्र ही आवे । "जो आज्ञा सम्राट्" कह कर दूत वहाँ से तत्काल चला गया। उसने नन्दिग्राम पहुँच कर १३४
SR No.010589
Book TitleShrenik Bimbsr
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekhar Shastri
PublisherRigal Book Depo
Publication Year1954
Total Pages288
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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