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________________ पिता-पुत्र की भेंट मध्याह्न होने मे अभी पर्याप्त विलम्ब है। सम्राट् श्रेणिक बिम्बसार की राजसभा भरी हुई है। समाट् समस्त सभासदो के बीच मे बैठे हुए शोभित हो रहे है जैसे अनेक पर्वतो के बीच मे सुवर्णमय सुमेरु पर्वत शोभित होता है। उन्होने अत्यधिक बहुमत्य वस्त्र पहिने हुए है, जिनके रत्नो की प्रभा आखो मे चकाचौध उत्पन्न कर देती है। वह सभी रग के रत्नो की प्रभा, देखने वाले को इन्द्र धनुष का भ्रम उत्पन्न कर रही है। महाराज एक स्फटिक पीठ के ऊपर बैठे हुए है। उनके ऊपर अत्यधिक श्वेत रेशमी वस्त्र का एक चदोवा तना हुआ था। उस चदोवे को चारो कोनो पर चार रत्नमय थम्भो ने उठाया हुआ है। उनको स्वर्ण-श्रृखलाओ से एक दूसरे के साथ बाँधा हुआ था। चदोवे में चारो ओर मोतियो की झालरे लगी हुई थी। सोने की मूठवाले अनेक चमर सम्राट् के ऊपर ढुलाये जा रहे है । उनके सिहासन में लगी हुई पद्मराग मणियो की रत्न-प्रभा उनके वक्षस्थल पर पडती हुई 'मधुकैटभ के वध से रक्त में सने हुए विष्णु का स्मरण करा रही है। उनके वस्त्रो में से नन्दन के इत्र की. भीनी-भीनी सुगन्धि आ रही है। उनके गले मे पडे हुए बडे-बडे मोतियो की माला से उनका मुख तारामण्डल से घिरे हुए चन्द्रमा की समानता कर रहा है। उनके भुजदण्डो में पडे हुए रत्नजटित अनन्त ऐसे जान पडते है, जैसे चन्दन की सुगन्धि से आकर्षित होकर नाग ही उनसे आकर लिपट गए हो। उनके कान में कमल का फूल लटका हुआ है। उनके नेत्र फूले हुए कमल के समान है। उनके विविध तीर्थों के जल से धोये हुए बाल बडी कुशलता से काढे जाकर पीछे को बध हुए है। उनका ललाट अष्टमी के चन्द्रमा के समान अर्धचन्द्राकार है। अपने समस्त सौन्दर्य से वह ऐसे दिखलाई दे रहे है, जैसे शिवजी के तृतीय नेत्र
SR No.010589
Book TitleShrenik Bimbsr
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekhar Shastri
PublisherRigal Book Depo
Publication Year1954
Total Pages288
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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