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________________ श्रेणिक बिम्बसार क्षमा किया जावे।" विप्रो के इस वचन को सुनकर समाट् बोले"हे ब्राह्मणो । वैसी रस्सी तो हमारे यहा नही है।" महाराज के मुख से ईन" शब्दो को सुनकर ब्राह्मणो ने उनसे निवेदन किया "कृपानाथ | जब वैसी रस्सी आपके भडार मे भी नही है तो हम कहा से बालू की रस्सी बनाकर ला सकते है ? प्रभो | कृपा कर हमको ऐसी अलभ्य वस्तु के लिये आज्ञा न दिया करे। हम आपके आज्ञाकारी सेवक तथा दीन प्रजा है और आप हमारे स्वामी है।" इस पर समाट् बोले“अच्छा, जाओ । बालू की रस्सी मत बनाना।" सम्राट् के यह शब्द सुनकर ब्राह्मण बडे खुश होकर नन्दिग्राम लौट गए। किन्तु उनके जाने के बाद महाराज के मन मे प्रतिहिसा की अग्नि फिर जलने लगी । उन्होने तनिक देर विचार कर फिर दूत को बुलाया और कहा___“तुम अभी नन्दिग्राम चले जाओ और वहा के ब्राह्मणो से कहना कि महाराज ने यह आज्ञा दी है कि वे मेरे पास एक ऐसा कूष्माड (पेठा) लावें जो घडे के अन्दर बन्द हो और घडे के पेट जितना ही बडा हो । कमती अथवा बढती न हो । यदि वह इस आज्ञा का पालन न कर सके तो नन्दिग्राम छोड दे।" दुत समाट् की इस आज्ञा को सुनकर तुरन्त ही नन्दिग्राम चला गया। वहा जाफर उसने राजा की आज्ञा जैसी की तैसी ब्राह्मणो को कह सुनाई। नन्दिग्राम के ब्राह्मए इस समय बडी भारी खुशिया मना रहे थे। किन्तु जब राजा का दूत वहा फिर पहुंचा तो उनका माथा ठनका। उसके मुख से महाराज की नई आज्ञा सुनकर तो उनके पैरो के नीचे की जमीन ही निकल गई । आज्ञा को सुनकर ब्राह्मए एक दम घबराए ओर भयभीत होकर थरथर कापने लगे, वे अपने मन में इस प्रकार सोचने लगे "हे भगवान् ! यह बला हमारे सिर पर कहा से आ टूटी। हम तो महाराज से अभी-अभी अपना अपराध क्षमा करवा कर आ रहे है। क्या हमारे १२८
SR No.010589
Book TitleShrenik Bimbsr
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekhar Shastri
PublisherRigal Book Depo
Publication Year1954
Total Pages288
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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