SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 3
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ उपादूघात. प्रथम श्रीकुंदकुंदाचार्य गाथा वद्ध करे, समैसार नाटक विचारि नाम दयो है ॥ ताहीके परंपरा अमृतचंद्र भये तिन्हे, संसकृत कलसा समारि सुख लयो है ॥ प्रगटे बनारसी गृहस्थ सिरीमाल अव, किये है कवित्त हिए वोध बीज बोया है | शब्द अनादि तामें अरथ अनादि जीव, नाटक अनादियों अनादिहीको भयो है ॥ १ ॥ ग्रंथकी महिमा. मोक्ष चलिवे शकोन करमको करे वौन, जाको रस भौन बुध लोण ज्यों ० घुलत है | गुणको गरंथ निरगुणको सुगम पंथ, जाको जस कहत सुरेश अकुलत है ॥ याहीके ने पक्षी ते उड़त ज्ञान गगनवें, याहीके विपक्षी जग जालमें रुलत है ॥ हाटकसो विमल विराटकसो विसतार, नाटक सुनत हिय फाटक खुलत है ॥ २ ॥ अनुक्रमणिका ३१ सा. जीव निरनीव करता करम पाप पुन्य, आश्रव संवर तिरजरा बंध मोक्ष है सरव विशुद्धि स्यादवाद साध्य साधक, दुवादस दुवार घरे समैसार कोष है | दरवानुयोग दरवानुयोग दूर करे, निगमको नाटक परम रस पोष है | ऐसा परमागम बनारसी वखाने यामें, ज्ञानको निदान शुद्ध चारितकी चोख है ॥ ३ ॥
SR No.010588
Book TitleSamaysar Natak
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages134
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy