SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 11
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (१०) यम कृतांत अंतक त्रिदश, आवर्ती मृतथान । प्राणहरण आदिततनयं, कालनाम परवान ॥ ३९ ॥ पुन्य सुकृत ऊर्ध्ववदन, अकररोग शुभकर्म । सुखदायक संसारफल, भाग बहिर्मुख धर्म ॥४०॥ पाप अधोमुख येन अघ, कंपरोग दुखधाम । कलि कलुष किल्विष दुरित, अशुभ कर्मके नाम॥४१॥ सिद्धक्षेत्र त्रिभुवन मुकुट, अविचल मुक्त स्थान । मोक्ष मुक्ति वैकुंठ सिव, पंचम गति निरवान ॥४२॥ प्रज्ञा धिषना सेमुषी, धी मेधा मति बुद्धि । सुरति मनीषा चेतना, आशय अंश विशुद्धि ॥४३॥ निपुण विचक्षण विबुधबुध, विद्याधर विद्वान। . पटु प्रवीण पंडित चतुर, सुधी सुजन मतिमान ॥४४॥ कलावंत कोविद कुशल, सुमन दक्ष धीमंत । ज्ञाता सज्जन ब्रह्मविद, तज्ञ गुणी जन संत ॥४५॥ . मुनि महंत तापस तपी, भिक्षुक चारित धाम । जती तपोधन संयमी, व्रती साधु रिष नाम ॥ ४६॥ दरस विलोकन देखनों, अवलोकन दिगचाल। लखन द्रिष्टि निरखन जुवन, चितवन चाहन भाल ॥४७॥ ज्ञान बोध अवगम मनन, जगतभान जगजान। संयम चारित आचरन, चरन वृत्ति थिरवान ॥४८॥
SR No.010588
Book TitleSamaysar Natak
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages134
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy