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________________ (९) जो नवकर्म पुरानसौं, मिलैं गंठिदिढ होइ। शक्ति बढ़ावै वंशकी, बंधपदारथ सोइ ॥ ३३॥ .. थितिपूरन करि कर्म. जो, खिरै बंधपद भान । हंसअस उज्जल करै, मोक्षतत्व सो जान ॥३४॥. भाव पदारथ समय धन, तत्व वित्त वसु दर्व । द्रविण अर्थ इत्यादि बहु, वस्तु नाम ये सर्व ॥ ३५ ॥ ___ अब शुद्ध जीवद्रव्यके नाम कहे हैं। सवैया ३१ सा. परमपुरुष परमेसर परमज्योति, परब्रह्म पूरण परम परधान है। अनादि अनंत अविगत अविनाशी अन, निरकुंद मुकत मुकुंद अमलान है। निरावाध निगम निरंजन निरविकार, निराकार संसार सिरोमणि सुजान है। सरवदरसी सरवज्ञ सिद्धस्वामी शिव, धनी नाथ ईश मेरे जगदीश भगवान ___ अव संसारी जीवद्रव्यके नाम कहे हैं। सवैया ३१ सा. चिदानंद चेतन अलख जीव, समैसारा बुद्धरूप अबुद्ध अशुद्ध उपयोगी है। चिद्रूप स्वयंभू चिनमूरति धरमवंत प्राणवंत प्राणी जंतु भूत भव भोगी है ।। गुणधारी कलाधारी भेषधारी, विद्याधारी, अंगधारी संगधारी योगधारी जोगी है ॥ चिन्मय अखंड हंस अक्षर आतमराम, करमको करतार परम वियोगी है ॥ ३७ ॥ दोहा. ..- खं विहाय अंबर गगन, अंतरीक्ष जगधाम । ज्योम वियत नम.मेघपथ, ये अकाशके नाम ॥ ३८॥ .
SR No.010588
Book TitleSamaysar Natak
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages134
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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