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________________ [ १४ ] के समान है, वहां के लोग वैदिक धर्मी ( आर्यसमाजी) न होते हुए भी अपने को आर्य कहते हैं। वे लोग अपनी दुकानों के नाम, आर्या होटल, आर्य लाज, श्रायविश्रान्तिगृह आदि रखना ही अधिक पसंद करते हैं, "हिन्दु लाज आदि नहीं। इसके अतिरिक्त जैन और बौध भी अपन को आर्य ही समझते हैं, हिन्दू कदापि नहीं ! यहाँ तक कि उनका तो यह सिद्धांत है कि हम हिन्दु नहीं अपितु श्राय॑ हैं। और तो क्या यदि ईसाई और मुसलमानों का भी हम अपने संगठन में सम्मिलित करना चाहें तो वे भी अपने को अार्य कहलाना तो स्वीकार कर लेंगे किन्तु हिन्दु कदापि नहीं। जैसा कि मैं पहिले लिख आया हूँ। आज जर्मनी का नेता हरहिटलर स्वयं ईसाई होता हुआ भी अपने को तथा अपनी जाति को आर्य नाम से पुकारने में अपना गौरव समझता है। उसने जर्मनी में यह घोषणा करदी है कि हमारी नेशन अर्थात् सभ्यता "आर्य सभ्यता" है यहूदी सभ्यता कदापि नहीं। अब मुसलमानों को लीजिये-एक स्थान पर मैं एक कट्टर मुसलमान से धार्मिक विषयों पर वार्तालाप कह रहा था। वार्तालाप करते समय उन्होंने मुझे कहा कि जैसी स्वामी दयानन्दजी ने आर्य शब्द की तारीफ अर्थात् लक्षण किया है। उसके मुतालिक तो हम (मुसलमान) भी आये हैं । उपर्युक्त विवेचना से यह स्पष्ट विदित हो जाता है कि लोग हिन्दू शब्द की अपेक्षा आर्य शब्द को ही अधिक पसन्द करते हैं। ऐसी अवस्था में आर्य पुरुपो ! हम अपने देश और जाति का संगठन भी आर्य शब्द से ही भली प्रकार कर सकते हैं। हिन्दु शब्द से कदापि नहीं। अतः मेरा
SR No.010582
Book TitleHum Aarya Hain
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadrasen Acharya
PublisherJalimsinh Kothari
Publication Year
Total Pages24
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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