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________________ कुछ जन्म से ललाट तक तो कुछ छेदन से ललाट तक, कुछ जन्म से शिर तक, तो कुछ छेदन से शिर तक, १०६. कोई मूर्च्छित कर दे, कोई वध कर दे 1 [ जिस प्रकार मनुष्य के उक्त अवययों का छेदन-भेदन कष्टकर है, उसी प्रकार वनस्पतिकाय के अवययों का । ] ११०. वही मैं कहता हूँ यह (मनुष्य) भी जातिधर्मक है, यह (वनस्पति) भो जातिधर्मक है 1 यह (मनुष्य) भी वृद्धिधर्मक है, यह (वनस्पति) भी वृद्धिधर्मक है । यह (मनुष्य) भी चैतन्य है. यह (वनस्पति) भी चैतन्य है । यह (मनुष्य) भी छिन्न होने पर कुम्हलाता है, यह (वनस्पति) भी छिन्न होने पर कुम्हलाता है । यह (मनुष्य) भी आहारक है, यह (वनस्पति) भी आहारक है । यह (मनुष्य) भी अनित्य है, यह (वनस्पति) भी अनित्य है 1 यह (मनुष्य) भी अशाश्वत है, यह (वनस्पति) भी अशाश्वत है । यह मनुष्य भी उपचित और अपचित है, यह (वनस्पति) भी उपचित और अपचित है । यह (मनुष्य) भी विपरिणामीघर्मक है, यह (वनस्पति) भी चिपरिणामी - धर्मक है । १११. शस्त्र-समारम्भ करने वाले के लिए यह वनस्पति कायिक वध-वन्धन अज्ञात है | ११२. शस्त्र-समारम्भ न करने वाले के लिए यह वनस्पतिकायिक वव-बन्धन ज्ञात है । ११३. उस वनस्पतिकायिक हिंसा को जानकर मेधावी न तो स्वयं वनस्पति-शस्त्र का उपयोग करता है, न ही वनस्पति-शस्त्र का उपयोग करवाता है और न ही वनस्पति-शस्त्र के उपयोग करने वाले का समर्थन करता है । ११४. जिसके लिए ये वनस्पतिकर्म की क्रियाएं परिज्ञात हैं, वही परिज्ञातकर्मी [ हिंसा-त्यागी ] मुनि है । शरत-परिज्ञा -- ऐसा मैं कहता हूँ । ३.५
SR No.010580
Book TitleAgam 01 Ang 01 Acharang Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1989
Total Pages238
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_acharang
File Size5 MB
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