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________________ उदरी - रोग - शूल - रोग, मूकता - गूंगापन, सूजन, भस्मकरोग, कम्पनत्व, पीठसप- पीठ का झुकाव, श्लीपद -- हाथीपगा और मधुमेह । ये सोलह रोग अनुपूर्व से आख्यात है । इसके अतिरिक्त प्रातंक, स्पर्श और असमंजसता का स्पर्श करते हैं । उनके मरण की सम्प्रेक्षा कर उपपात और च्यवन को जानकर तथा परिपाक / कर्मफल को देखकर उसे यथार्थ रूप में सुने । ११. प्राणी अन्धकार में होने से अन्धे कहे गये हैं । १२. वहाँ पर एक बार या अनेक वार जाकर उच्च प्रताप-स्पर्श का प्रतिसंवेदन करता है । १३. यह बुद्ध-पुरुपों द्वारा प्रवेदित है । १४. प्रारणी वर्षंज, रसज, उदक / जलज, उदकचर प्राकाशगामी हैं । १५. प्राणी प्राणियों को क्लेश / कष्ट देते हैं । १६. लोक के महाभय को देख । १७. जन्तु वहुदुःखी हैं । १८. मनुष्य काम में ग्रासक्त हैं । १९. अवल भंगुर शरीर के लिए वध करते हैं । २०. जो आर्त है, वह वाल/ अज्ञानी बहुत दुःख करता है । २१. रोग बहुत है, ऐसा जानकर आतुर मनुष्य परिताप देते हैं। देखो ! समर्थ ही नहीं है । इनसे तुम्हारे लिए कोई प्रयोजन है । २२. मुने ! इस महाभय को देख । घुत ११७
SR No.010580
Book TitleAgam 01 Ang 01 Acharang Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1989
Total Pages238
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_acharang
File Size5 MB
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