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________________ पूर्व स्वर प्रस्तुत अध्याय 'युन/धून' है। यह अध्याय कर्म-मरण का अभियान है। जीवन की उत्पत्ति से लेकर महामुनित्व की प्रतिष्ठा का नारा वृतान्त इसमें आकलित है। चेतना की जागरूकता ही आरोग्य-लान है। कार्मिक परिवेश के माय चेतना की साझेदारी मंत्री विपर्यास है। प्रात्मा एकाकी है. अतः और तो क्या कर्म भी उसके लिए पड़ोती है, घरेलू नहीं। परकोच पदार्थों से स्वयं को अतिरिक्त देखने का नाम ही भेद-विज्ञान है। कर्मों की खेती कपाय और विषय-वासना के बदौलत होती है। राग और वैप कर्म के बीज हैं। कर्म जन्म-मरण का हलघर है । जन्म-मरण से ही दुःख की तिक्त तुम्बी फलती है। और, दुःख संसार की वास्तविकता है। मुनि-जीवन वीतरागता का अनुमान है । इसलिए यह संसार से दूरी है। ___मनुष्य का मन सदा संसरणशील रहता है। अतः मन की मृत्यु का नाम हो मृनित्व की पहवान है। मन प्रचण्ड ऊर्जा का स्वामी है। यदि इसके व्यक्तित्व का मन्यच्चोध कर इसे नृजनात्मक कार्यों में लगा दिया जाए, तो वह प्रात्नदर्शन/ परमात्म-साक्षात्कार में अनन्य सहायक हो सकता है। जीवन में मुनित्व एवं गार्हस्थ्य दोनों का अंकुरण सम्भव है । मन की कसौटी पर गृहस्य भी मुनि हो सकता है और मुनि भी गृहस्थ । तन-मन को सत्ता पर आत्म-प्राधिपत्य प्राप्त करना स्वराज्य की उपलब्धि है। कर्म-शबुओं को फोड़ने के लिए अहर्निश सन्नद्ध रहना आत्मशास्ता का दायित्व है। सत्य की मुखरता प्रात्मा की पवित्रता से है। मन के मौन हो जाने पर ही निःशब्द सत्य निर्विकल्प समाधि अंकृत होती है। अतः वाह्याभ्यन्तर की स्वच्छता वास्तव में कैवल्य का प्रालिंगन है। स्वयं को जगाकर महामुनित्व का महोत्सव आयोजित करना स्वयं में सिद्धत्व की प्राण-प्रतिष्ठा है।
SR No.010580
Book TitleAgam 01 Ang 01 Acharang Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1989
Total Pages238
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_acharang
File Size5 MB
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