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________________ 15454545454545454545454545454545 ' मधुर एवं प्रभावी उपदेश जैन अजैन, वृद्ध, बाल-युवा, जो भी सुनता, धर्ममय - हो जाता। ऐसे यशस्वी एवं परम वीतरागी आचार्य 108 श्री शान्तिसागर जी - महाराज छाणी के महान उपदेशों एवं उनके पावन जीवन की स्मृति को E युगों-युगों तक बनाये रखने के लिए इस स्मृति ग्रंथ के प्रकाशन की योजना TE निश्चय ही प्रशंसनीय है। इस ग्रंथ के माध्यम से आचार्य श्री का पावन जीवन हमें तथा भावी पीढ़ियों को युगों-युगों तक धर्म की ओर प्रवृत्त करता रहेगा। TE परमपूज्य आचार्य श्री ने जिस प्रकार अपने मनुष्य-भव को सार्थक बनाकर भव्य प्राणियों का कल्याण किया, ऐसा ही सुयोग जीवन में हमें भी प्राप्त हो। इसी भावना के साथ में आचार्य श्री के पावन चरणों में अपनी विनम्र श्रद्धाञ्जलि समर्पित करता हूँ। मेरठ सुकुमार चन्द एक संस्मरण सम्यक् साधना के साधक आचार्य श्री... 4545454545454545454545454545454545454545 महान आचार्य श्री शान्तिसागर जी महाराज छाणी इस सदी के मनि 1-परम्परा के चारित्र चक्रवर्ती आचार्य श्री शान्तिसागर जी दक्षिण के समकालीन आदि सन्त हैं। भगवंत समन्त भद्र की "ज्ञान-ध्यान-तपोरक्त" की उक्ति के यह साकार रूप थे। अपार तपः साधना, अगाध ज्ञान और आत्मोत्कर्ष की ओर ले जाने वाला सातिशय उन्नत ध्यान के परम प्रभावी सन्त थे। एक दिन मैंने अपनी ८५ वर्षीय वृद्ध माँ से यह प्रकरण सुना था कि 1 आज से ७० वर्ष पूर्व विक्रम सम्वत् १६८२ में ग्रीष्म का समय था। चारों ओर भयंकर आताप से सभी जीव दुःखी थे। पृथ्वी दिन में भीषण गर्मी के कारण आग उगलती सी महसूस हो रही थी। ऐसे समय में अचानक आसपास के ग्रामों में बिजली की तरह यह खबर फैली कि परम तपस्वी महान ज्ञानी सन्त शिरोमणि आचार्य श्री शान्तिसागर जी छाणी बुन्देलखण्ड के तीर्थों की वन्दनार्थ आए हैं। आज जैसे सुलभ वाहन, साधन एवं सड़क मार्ग नहीं थे। 11 जहाँ-जहाँ आचार्य श्री का पद विहार हो रहा था, ग्रीष्म ऋतु भी उनके पाद--। +140 प्रशममूर्ति आचार्य शान्तिसागर छाणी स्मृति-ग्रन्थ 1594554545454545454545454545454545
SR No.010579
Book TitlePrashammurti Acharya Shantisagar Chani Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKapurchand Jain
PublisherMahavir Tier Agencies PVT LTD Khatuali
Publication Year1997
Total Pages595
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationSmruti_Granth
File Size22 MB
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