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________________ फफफफफफफफ 5555555555555555 卐 सिंहवृत्ति साधक यह जानकर अत्यन्त प्रसन्नता हुई कि आचार्य श्री शान्तिसागर जी छाणी का स्मृति ग्रंथ प्रकाशित हो रहा है। वे इस बीसवीं शताब्दी के प्रथम चरण के दिगम्बर जैन साधु थे। हम लोगों का वह विद्यार्थी जीवन का काल था । केवल उस समय दिगम्बर जैन साधुओं का स्वरूप शास्त्रों / पुस्तकों में पढने को मिलता था। या कभी-कभी जैन विद्वानों द्वारा मुनियों की चर्चा सुनने को मिल जाती थी । दिगम्बर जैन समाज दिगम्बर जैन साधु के दर्शन करने को लालायित था । उस समय दूर-दूर तक कोई दिगम्बर जैन मुनि का नाम भी सुनने को नहीं मिलता था। उन्होंने वि. संवत् 1980 में भगवान आदिनाथ की साक्षी पूर्वक समाज के सामने सिंहवृत्ति स्वरूप नग्न दीक्षा ग्रहण की थी और विलुप्तप्राय मुनि परम्परा को पुनर्जीवित कर आदर्श श्रमण संस्कृति का पुनरूत्थान किया था। उन्होंने राजस्थान, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश के सैकड़ों नगरों में विहार कर धर्मोपदेश दिया और दिगम्बर जैन सम्प्रदाय के चिर- पिपासित धर्मावलम्बियों को अपने दर्शनों से लाभान्वित किया। उनके प्रथम विहार से जैन जगत् में चेतना की एक नई लहर जाग उठी थी। वे हमारी श्रमण संस्कृति के आदर्श साधु थे। उनकी पावन स्मृति में, उनके पुनीत चरणों में शत-शत प्रणाम । कटनी स० सिंघई धन्य कुमार जैन एक महान् आचार्य आचार्य श्री शान्तिसागर जी (छाणी ) स्मृति ग्रन्थ के लिए आपका पत्र मिला। मेरा स्वयं तो उनसे कभी सम्पर्क नहीं रहा। जब उन्होंने क्षुल्लक दीक्षा ग्रहण की, उस वर्ष मेरा जन्म हुआ था। जब उनका समाधिमरण हुआ तब मैं केवल 22 वर्ष का था । इसलिए उनके विषय में कुछ लिखना सूर्य को दीपक दिखाने के समान है। जहां तक उनके विषय में सुना है, वे एक महान् 24 प्रशममूर्ति आचार्य शान्तिसागर छाणी स्मृति ग्रन्थ $555555555 फफफफफफफफफ
SR No.010579
Book TitlePrashammurti Acharya Shantisagar Chani Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKapurchand Jain
PublisherMahavir Tier Agencies PVT LTD Khatuali
Publication Year1997
Total Pages595
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationSmruti_Granth
File Size22 MB
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