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________________ 5555555555555555 55 स्वनामधन्य दिगम्बराचार्य आचार्य श्री शान्तिसागर जी ने विलुप्त मुनि परम्परा को पुनर्जीवित किया। भारतीय संस्कृति सदा ही सन्तों की साधना से ही अंकुरित, पल्लवित और पुष्पित हुई है। इस शताब्दी में भी भारतवर्ष में अनेक स्वनामधन्य दिगम्बर जैन साधु हुए हैं। आचार्य श्री शान्तिसागर जी (छांणी) वर्तमान शताब्दी के प्रथम चरण के महान् तपस्वी निर्ग्रन्थाचार्य थे। आपकी वाणी में मधुरता, स्नेह और लोकोपकार की भावना थी। आपने धर्म का मूल सिद्धान्त अहिंसा का प्रचार किया। बांसवाड़ा में 30 दिन का उपवास तथा जैनेतर द्वारा बड़वानी में किये गये घोर उपसर्ग पर भी महाराज श्री जरा भी विचलित नहीं हुए। यह चमत्कारी घटना तो है ही, साथ ही जैन समाज के लिए गौरव की बात भी है। ऐसे महान् वीतरागी सन्त परमपूज्य आचार्य श्री के प्रति मैं अपने तथा अपने परिवार की ओर से भावभीनी श्रद्धाञ्जलि अर्पित करती हूँ तथा ग्रंथ के लिए शुभकामनायें प्रेषित करती हूँ । श्रीमती गीता जैन, स्योहारा श्रद्धाञ्जलि मेरी तो मान्यता ही नहीं, अपितु दृढ़ विश्वास है कि इस बीसवीं सदी में निर्ग्रन्थ परम्परा के महान् श्रमणों ने ही हमारी संस्कृति की पहिचान को जीवित रखा है। आचार्य श्री शान्तिसागर जी महाराज छाणी ने ग्राम-ग्राम में मंगल विहार करके समाज का जो उपकार किया, वह सदैव इतिहास के पृष्ठों में स्वर्णाक्षरों में अंकित रहेगा। आप महानुभाव प्रयत्न करके इन महामानवों की स्मृति को संजोकर आज की पीढ़ी को प्रेरणा प्रदान करने का जो महान् कार्य कर रहे हैं, वंदनीय है। मैं आपके इस प्रयास की सफलता की कामना करता हॅू तथा आचार्य श्री के चरणों में श्रद्धाञ्जलि अर्पित करता हूं। इन्दौर बाबूलाल पाटोदी प्रशममूर्ति आचार्य शान्तिसागर छाणी स्मृति ग्रन्थ 23 Sh 5555555555555555
SR No.010579
Book TitlePrashammurti Acharya Shantisagar Chani Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKapurchand Jain
PublisherMahavir Tier Agencies PVT LTD Khatuali
Publication Year1997
Total Pages595
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationSmruti_Granth
File Size22 MB
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