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________________ फफफफफफफफ 155555555555 यशोधर चरित्र की हिन्दी गद्य टीकायें हो चुकी हैं तथा स्वाध्याय के लिये उनकी पर्याप्त मांग रहती है। भट्टारक ज्ञानभूषण जी भट्टारकज्ञानभूषण जी भट्टारक भुवनकीर्ति जी के पश्चात् भट्टारक गादी पर बैठे थे। वे अपने समय के सर्वाधिक लोकप्रिय भट्टारक थे। उत्तरी भारत में एवं विशेषतः राजस्थान एवं गुजरात में उनका जबरदस्त प्रभाव था। मुस्लिम शासन काल होते हुए भी वे बराबर पद यात्रायें करते रहे और बड़े-बड़े समारोहों का आयोजन करके जैनधर्म, साहित्य एवं संस्कृति का प्रचार करते रहे। विद्वानों में उनकी बराबरी करने वाले उस समय बहुत कम । उनकी भाषण- शैली भी आकर्षक थी। भट्टारक ज्ञानभूषण जी का समय संवत् 1530 1557 तक का माना जाता है। साहित्य सृजन में इनकी विशेष रुचि थी । प्राकृत, संस्कृत, गुजराती एवं राजस्थानी पर इनका पूर्ण अधिकार था । श्री नाथूराम प्रेमी ने इनके तत्वज्ञानतरंगिणी, सिद्धान्तसार भाष्य, परमार्थोपदेश, नेमिनिर्वाणपंजिका टीका, पंचास्तिकाय, दशलक्षणोद्यापन, आदीश्वरफाग, भक्तामरोद्यापन, सरस्वती पूजा आदि ग्रंथों का उल्लेख किया है। पं. परमानन्द जी शास्त्री ने उक्त रचनाओं के अतिरिक्त सरस्वती स्तवन, आत्मसंबोधन का और उल्लेख किया है। लेकिन राजस्थान के ग्रंथ भंडारों में इनकी अब तक निम्न रचनायें उपलध हो चुकी हैं संस्कृत कृतियां 1. आत्मसंबोधन काव्य 2. तत्वज्ञान तरंगिणी 3. ऋषिमंडल पूजा 4. पूजाष्टक टीका 5. 6. भक्तामर पूजा पंचकल्याणक व्रतोद्यापन पूजा 7. श्रुतपूजा 9. 8. सरस्वती पूजा सरस्वती स्तुति 10. शास्त्रमंडल पूजा 11. दशलक्षणव्रतोद्यापन पूजा 458 प्रशममूर्ति आचार्य शान्तिसागर छाणी स्मृति ग्रन्थ 555555555555555555 55555555555555555
SR No.010579
Book TitlePrashammurti Acharya Shantisagar Chani Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKapurchand Jain
PublisherMahavir Tier Agencies PVT LTD Khatuali
Publication Year1997
Total Pages595
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationSmruti_Granth
File Size22 MB
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