SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 503
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 45454545454545454545454545454545 卐 भट्टारक संस्था की नींव सुदृढ़ करके समाज को एक नई दिशा प्रदान की। आवां, टोडारायसिंह जैसे नगरों में निषेधिकाएं स्थापित किया जाना ही उनकी उज्ज्वल छवि का द्योतक है। आचार्य सोमकीर्ति जी आचार्य सोमकीर्ति 16वीं शताब्दी के उद्भट विद्वान्, प्रमुख साहित्य सेवी, प्रतिष्ठाचार्य एवं प्रमुख सन्त थे। वे योगी थे। आत्मसाधना में तल्लीन रहते थे। वे संस्कृत, प्राकृत, राजस्थानी, गुजराती एवं हिन्दी के प्रकाण्ड TE विद्वान थे। उन्होंने संस्कृत एवं हिंदी दोनों ही भाषाओं को अपनी रचनाओं से उपकृत किया। उनकी प्रेरणा से कितने ही मंदिरों का निर्माण हआ। बीसों पंचकल्याणक प्रतिष्ठायें इनके निर्देशन में संपन्न हुई। वे श्रमण संस्कृति, साहित्य एवं शिक्षा के महान् प्रचारक थे। वे संवत् 1518 में भट्टारक पद पर आसीन हुए और संवत् 1540 तक भट्टारक गादी पर बने रहे। वे भट्टारक होते हए भी अपने को आचार्य लिखना अधिक पसंद करते थे। श्री सोमकीर्ति द्वारा रचित ग्रंथों के नाम निम्न प्रकार हैं : संस्कृत रचनायें सप्तव्यसन-कथा-समुच्चय प्रद्युम्न चरित्र अष्टाहिनका-व्रतकथा समवसरणपूजा 5. यशोधरचरित्र हिंदी रचनायें यशोधर रास गुरु नामावली 3. रिषभनाथ की धूल 4. त्रेपन क्रियागीत 5. आदिनाथ विनती 6. मल्लिगीत F7. चिंतामणि-पार्श्वनाथगीत आचार्य सोमकीर्ति की उक्त सभी रचनायें भाषा, विषय एवं शैली आदि भी सभी दृष्टियों से महत्वपूर्ण रचनायें मानी जाती हैं। प्रद्युम्न चरित्र एवं प्रशममूर्ति आचार्य शान्तिसागर छाणी स्मृति-ग्रन्थ 457 71415111111FIFIFIFIFIFIEI यामानानानानानानानानानानामा
SR No.010579
Book TitlePrashammurti Acharya Shantisagar Chani Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKapurchand Jain
PublisherMahavir Tier Agencies PVT LTD Khatuali
Publication Year1997
Total Pages595
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationSmruti_Granth
File Size22 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy