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________________ 1555555555555555555555555555 जैनाचार्यों ने संख्याओं को तीन रूपों में वर्गीकृत किया है-संख्यात, असंख्यात और अनंत। इनमें संख्यात गणनीत संख्या है। इसके तीन भेद हैं-जघन्य, मध्यम और उत्कृष्ट । इनमें जघन्य संख्यात का मान दो है, मध्यम संख्यात का मान तीन, चार आदि से प्रारंभ होकर उत्कृष्ट संख्यात-1 तक माना जाता है। इसका उच्चतम मान 1016 तक माना जाता है। उत्कृष्ट - संख्यात का मान उपमा मान द्वारा पल्योपम आदि के रूप में परिकलित किया TE जाता है। मुनि महेन्द्र ने इसका मान 101973 से भी अधिक परिकलित किया है। उन्होंने यह भी बताया है कि इसका वास्तविक मान व्यावहारिक गणित 4 से प्राप्त करना असंभव प्रतीत होता है। शायद कंप्यूटर-युग इस असंभव को संभव बना दे। इससे उत्तरवर्ती मान असंख्यात की कोटि में आते हैं। ये लौकिक गणित में नहीं आते। ये मान परीत, युक्त और असंख्यात के मूल तीन भेदों के उत्तम, मध्यम और जघन्य उपभेदों के आधार पर नौ प्रकार के होते हैं। धवला में बताया गया है कि अनंत वह राशि है जो व्ययित होने पर भी अनंत काल तक समाप्त न हो। इसके ग्यारह भेद बताये गये हैं-नाम, स्थापना, द्रव्य, शाश्वत, गणना, अप्रदेशिक (परमाणु), एक, उभय, विस्तार, सर्व और भाव। अन्य अनंतों की तुलना में गणनानंत ही महत्त्वपूर्ण है। इसी के आधार पर अनेक राशियों का विवरण दिया जाता है। फिर भी, वीरसेन स्वामी ने सभी अनंतों की परिभाषायें दी हैं। अनंत संख्या का यह विभाजन भी श्री वीरसेन स्वामी की विशेषता है। इनमें से द्रव्यानंत का विवरण अनुयोग द्वार के भाव-प्रमाणी द्रव्यसंख्या के समान ही है। इसके संख्याष्टक में अनंत का समाहरण गणना संख्या के तीन भेदों में हुआ है। श्री अकलंक स्वामी ने अनंत का समाहरण संख्या में ही किया है। अनंत के 11 भेदों की तुलना में अनुयोग द्वार में उसके आठ भेद ही बताये हैं जो गणनानंत को निरूपित करते हैं। सामान्यतः अनंत के भी तीन भेद हैं-परीत, युक्त और अनंतानंत। धवला के अनुसार, सभी कोटि के ये अनंत उत्तम, मध्यम और जघन्य के भेद से तीन-तीन प्रकार के होते हैं। फलतः अनंत के 9 भेद होते हैं। इसके विपर्यास में अनुयोग द्वार कुल 8 भेद ही मानता है। इस प्रकार दिगंबर मत से संख्यामान IE के 21 भेद होते हैं और अनुयोगद्वार मत से 20 भेद ही होते हैं। अनुयोग - द्वार अनंतानंत का उत्कृष्ट भेद स्वीकार नहीं करता। कुछ + शोधकों ने इन सभी संख्यामानों के लिये नये युग के अनुरूप संकेतों के सुझाव : ॥ दिये हैं जो अभी लोकप्रिय नहीं हो पाये हैं। उदाहरणार्थ, संख्यात के लिये प्रशममूर्ति आचार्य शान्तिसागर छाणी स्मृति-ग्रन्थ 376 Pाटाटा 1- IPIRI-FIFIFIPाना
SR No.010579
Book TitlePrashammurti Acharya Shantisagar Chani Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKapurchand Jain
PublisherMahavir Tier Agencies PVT LTD Khatuali
Publication Year1997
Total Pages595
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationSmruti_Granth
File Size22 MB
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