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________________ 1555555555555555555555555 होता है कि, धवला के द्रव्य प्रमाण को सत्संख्यादि सत्र के 'संख्या' पद के समकक्ष मानकर उसके धवला के समान ही तीन भेद किये हैं। इसे लौकिक गणनामान के समकक्ष माना जा सकता है। इस प्रकार, विविध ग्रंथों में विभिन्न प्रकार से किये गये भेद-प्रभेदों के कारण पूर्व की परिभाषायें किंचित जटिलता में परिवर्तित हई है। वस्तुतः लोकोत्तर पद से ऐसे मान ग्रहण करने चाहिये जो सामान्य व्यवहार-मानों की तुलना में अमापनीय कोटि में आते हैं। उदाहरणार्थ सूक्ष्मतम परमाणु, प्रदेश समय तथा बृहतर संख्यात, असंख्यात और अनंत के मान। इस आधार पर अनुयोग द्वार के प्रदेश निष्पन्न मान तथा संख्यामान (भाव-प्रमाण) लोकोत्तर कोटि में आवेंगे। तथा विभाग-निष्पन्न मान लौकिक कोटि में माने जाने चाहिए। लेकिन यहां भी अपवाद हो सकते हैं। यहां यह बताना अनुपयुक्त न होगा कि जैन शास्त्रों में गणित विद्या की उत्थनिका दृष्टिवाद अंग के परिकर्म खंड में भी प्राप्त होती है। नन्दीसूत्र के अनुसार, परिकर्म के सात भेदों के उपभेदों में राशिबद्ध, एकगण, द्विगुण, त्रिगुण, अवगाढ़ श्रेणी आदि अंकगणितीय तथा क्षेत्रमितीय सूचनायें हैं। ऐसा प्रतीत होता है कि यह विवरण स्थानांग के दस संख्यानों से पूर्ववर्ती है। फिर भी, यह अनुसंधेय विषय है। सारणी 1 आगमतुल्य जैन ग्रंथों में माप के भेद 1 ग्रंथ कोटि द्रव्यप्रमाण क्षेत्रप्रमाण काल प्र. भाव प्र. 1. षटखंडागम लोकोत्तर संख्यात, प्रदेश- समय- ज्ञान असंख्यात, लोक उत्सर्पिणी अनंत (9/11) अवसर्पिणी T: 2. अनुयोगद्वार लौकिक, मूलयूनिट- एकादि समय- गुण, नय, सूत्र: लोकोत्तर परमाणु प्रदेश आवलि संख्या 13. राजवार्तिक व्युत्पन्न यूनिट 5 प्रकार (भार, लंबाई, अंगुल-लोक उत्स. आयतन आदि) अव. अवस. लोकोत्तर । 1. एक-परमाणु- एकप्रदेश- एकसमय- ज्ञान महास्कंध उत्तम, सर्वलोक अनंतकाल दर्शन मध्यम, जघन्य 2. उपमामान उ.म.ज. लौकिक व्युत्पन्न यूनिट 6 प्रकार T-4. राजवार्तिक LE 11 प्रशममूर्ति आचार्य शान्तिसागर छाणी स्मृति-ग्रन्थ . 374 555555555555555
SR No.010579
Book TitlePrashammurti Acharya Shantisagar Chani Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKapurchand Jain
PublisherMahavir Tier Agencies PVT LTD Khatuali
Publication Year1997
Total Pages595
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationSmruti_Granth
File Size22 MB
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