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________________ 45454545454545454545454545454545 7 में अनुवर्तन किया है। यन्मया दृश्यते रूपं तन्न जानति सर्वथा। जानन्न दृश्यते " रूपं ततः केन व्रवीम्यहम्।। अन्य भी गाथाओं को ज्यों का त्यों ग्रहण किया है। समाधितंत्र एक हृदयग्राही रचना है। दशभक्ति भक्तियॉ बारह हैं। भक्तियाँ मूलरूप में प्राकृत भाषा में आचार्य कुन्दकुन्द 51 प्रणीत मानी गयी हैं। पण्डित श्री प्रभाचन्द्र प्राकृत सिद्ध भक्ति के अन्त में सूचना करते हैं कि सभी संस्कृत भक्तियां पूज्यपाद द्वारा रची गयीं हैं और प्राकृत भक्तियाँ आचार्य कुन्दकुन्द की हैं। भक्तियाँ-(1) सिद्धभक्ति, (2) - श्रतभक्ति, (3) चारित्र भक्ति, (4) योगभक्ति, 5) आचार्यभक्ति, (6) पञ्चगुरुभक्ति, (7) तीर्थकर भक्ति, (8) शान्ति भक्ति, ७) समाधिभक्ति. (10) निर्वाण भक्ति, (11) नन्दीश्वर भक्ति, (12) चैत्यभक्ति ये बारह हैं। पूज्यपाद स्वामी की संस्कृत में सिद्ध भक्ति, श्रुतभक्ति, चारित्र भक्ति, योगिभक्ति, निर्वाण भक्ति और नन्दीश्वर भक्ति ये सात भक्तियां हैं। इनमें मात्र नन्दीश्वर भक्ति TE ही संस्कृत में है, शेष प्राकृत और संस्कृत दोनों में हैं। शान्त्याष्टक चन्द्रय्य' नामक कवि ने श्री पूज्यपाद स्वामी के विषय में एक घटना का उल्लेख किया है कि एक बार श्री पूज्यपाद की आँखों की ज्योति समाप्त हो गयी थी, उन्होंने 'शान्त्याष्टक का पाठ किया, उन्हें ज्योति प्राप्त हो गई थी। इसी आधार पर पं0 प्रभाचन्द्र ने शान्त्याष्टक की उत्थानिका में लिखा है कि पूज्यपाद स्वामी "न स्नेहाच्छरणं" पद से प्रारम्भ होने वाले 'शान्त्याष्टक' नामक स्तुति के रचयिता हैं। सारसंग्रह आचार्य पूज्यपाद स्वामी ने इस ग्रन्थ की रचना की थी इसका संकेत धवला के इस उल्लेख से ज्ञात है "सारसंग्रहेऽप्युक्तं पूज्यपादैः अनन्तपर्यायात्मकस्य : वस्तुनोऽन्य तम पर्यायाधिगमे कर्तव्ये जात्य हेत्वपेक्षो निरवद्य प्रयोगोनय इति" सर्वार्थसिद्धि में वर्णित नय स्वरूप से साम्य होने के कारण पूज्यपाद स्ववामी द्वारा सारसंग्रह की रचना की गयी थी ऐसा सोचा जाता है।" जैनेन्द्र और शब्दावतारन्यास शिमोगा जिले के नगर तहसील के 46वें शिलालेख में उल्लेख मिलता - है कि पूज्यपाद ने एक जैनेन्द्र नामक न्यास और दूसरा शब्दावतारन्यास लिखा था प्रशममूर्ति आचार्य शान्तिसागर छाणी स्मृति-ग्रन्थ 368 1545454545454545454545454545755765557
SR No.010579
Book TitlePrashammurti Acharya Shantisagar Chani Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKapurchand Jain
PublisherMahavir Tier Agencies PVT LTD Khatuali
Publication Year1997
Total Pages595
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationSmruti_Granth
File Size22 MB
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