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________________ 卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐5卐 5555555555 编织 अपेक्षा कुछ विशेषताएं हैं। इष्टोपदेश यह उपदेश प्रधान अध्यात्मिक रचना है। विषयोन्मुख को विषय-विमुख करना या पराश्रित को आत्माश्रित करना इसका मुख्य लक्ष्य है। संसारी प्राणी निरन्तर आर्त्त और रौद्र ध्यान में रहता है, जिसके कारण आत्मशक्ति का अवमूल्यन करता है। आत्मा किस प्रकार से स्वरूप की प्राप्ति कर सकता है इसको आचार्य पूज्यपाद ने अपनी इस 'इष्टोपदेश' नामक इक्यावन छन्द वाली प्रभावात्मक कृति में वर्णित किया है। आत्मशक्ति के विकास के लिये अनुभूति की अपेक्षा होती है। इष्टोपदेश का स्वाध्याय आत्मा की अनुभूति कराने में परम सहायक है। आचार्य पूज्यपाद इसके अंतिम श्लोक वसन्ततिलका छन्द में लिखते हैं इष्टोपदेशमिति सम्यगधीत्य धीमान्। मानापमानसमतां स्वमताद्वितव्य ।। मुक्ताग्रहो विनिवसेन् सजने वने वा । मुक्तिश्रियं निरुपमामुपयाति भव्यः । अर्थात् इसके अध्ययन से आत्मा की शक्ति विकसित हो जाती है और स्वात्मानुभूति के आधिक्य के कारण मान-अपमान, लाभ-अलाभ, हर्ष-विषाद आदि में समताभाव प्राप्त होता है। संसार की यथार्थ स्थिति प्राप्त होने से राग, द्वेष, मोह की परिणति घटती है। आचार्य श्री ने इसमें बिन्दु में सिन्धु समाहित करने की उक्ति को चरितार्थ किया है। यह लघु कृति विषय की दृष्टि से महान है। समयसार के सार रूप में रचित इष्टोपदेश सरल सुबोध शैली वाली अध्यात्म रस परिपूर्ण कृति है, मुमुक्षुओं को विशेषतः ग्राह्य है। समाधितन्त्र 555555555 अध्यात्म रस का प्रवाह प्रवाहित करने वाली इस कृति 105 पद्य हैं। यह रचना आचार्य पूज्यपाद ने संभवतः अन्तःपरीक्षण के लिए की थी । अध्यात्म प्रधान इसमें आत्मस्वरूप चित्रक है। इसका अपरनाम सभाधिशतक है। आचार्य कुन्दकुन्द के समय प्राभृत एवं नियमप्राभृत की गाथाओं का अनुसरण भी किया गया है। आचार्य कुन्दकुन्द स्ववामी के शब्दों को मात्र भाषा परिवर्तन करके स्वीकार किया है। यथा जं मया दिस्सदेरूपंतं ण जाणदि सव्वहा । जागो दिस्सदे णतं तम्हा जंपेमि केण हं । मोक्षप्राभृत, इसी को श्री पूज्यपाद ने समाधितंत्र में ठीक इन्हीं शब्दों प्रशममूर्ति आचार्य शान्तिसागर छाणी स्मृति ग्रन्थ 367 卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐
SR No.010579
Book TitlePrashammurti Acharya Shantisagar Chani Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKapurchand Jain
PublisherMahavir Tier Agencies PVT LTD Khatuali
Publication Year1997
Total Pages595
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationSmruti_Granth
File Size22 MB
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