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________________ 454545454555657451461454545454545546 श्रीशान्तिसागरनो उज्ज्वल दीपक श्री शान्तिसागर जे दीपक उज्जवल हतो मेवाडमां, ते छोडीने कीर्ति सु उज्जवल सीधाव्यां छे स्वर्गमां। शान्तिसागर जी आवलो एवी अरज करवा हमे, अहिं अष्टद्रव्यो भावथी पूजा प्रभु भाणीए अमे। मेवाड़मां शुभ गाम छाणी भागचन्द्रो जैन छे, माणिकबाई कुक्षथी गुरुजी तमारो जन्म छे। वर्ष पंचावन तणी आयु महीय अकाल तो. जप अने तपमां थयुं छे सागवाड़ा निधन तो। मिथ्यात्व देशोमां छवायुं जे तमे टळयुं गुरु, कुरिवाजो कुचल बहु आजे तमे टाल्या गुरु। बोर्डिंग अने भुवन सरस्वती ने बळी कई आश्रमो. कई ज्ञाननां क्षेत्रो वसावी सिधाव्या छो स्वर्गमां। मुकी गुरुजी कीरती उज्जवल स्वर्गमां सीधावीया, ते कीर्तिथी जीवो तणे मुख याद बहुये आवीया। गुरुजी सीधाव्या स्वर्ग तेथी आल भारे खाटे छे, सबोधी ने ज्ञानी हता ते आज छोड़ी जाय छे। देश देशे करी अटन ने भव्य जीव उपदेशीया। पाते तरी उपदेश दई तार्या डबेला जीवडा। जोडीने कर वे प्रभु वीना ए कीरतीवंतने, शान्ति चीरा देजो प्रनीत चरणे प्रभू ए गुरुजीने। दिगम्बर जैन 20-6-44 से साभार आचार्यवर्य श्री शान्तिसागर, स्वर्गवासी हो गये। कर्म को तप से.जलाकर, आत्मवासी हो गये।ाटेक।। अस्त सूर्य हुआ हमारा, प्रकाश बिन हम क्या करें। कौन बताये गये गुरुवर, राह में हम भूले पड़े। आ।। बीच समुद्र में डूबे हुये थे, खड़कवासी हम सभी। नाव बनकर तारते थे, नाव हमारी डूब गई। आ.|| कौनसी जिहवा से गुरुजी, गण आपके गाऊं मैं। सहस्र जिवा जो बनावे, तो भी गुणगा सकते नहीं। आ.|| 'गेवीलाल' दास तुम्हारा, करे अन्तीम प्रार्थना। भव भव में मांगूं आत्मबल, और मांगूं कुछ नहीं। आ.।। दिगम्बर जैन 20-6-44 से सामार प्रशममूर्ति आचार्य शान्तिसागर पाणी स्मृति-ग्रन्थ 57 TE 275. 359999999
SR No.010579
Book TitlePrashammurti Acharya Shantisagar Chani Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKapurchand Jain
PublisherMahavir Tier Agencies PVT LTD Khatuali
Publication Year1997
Total Pages595
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationSmruti_Granth
File Size22 MB
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