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________________ 54547454545454545454545454545 + मुन्नालाल जी खुरई वाले आ गये। बड़ा आनंद रहा यहां से महाराज ने मुनि आनंद सागर जी के साथ विहार किया, सूर्यसागर महाराज यहां से अलग TE विहार कर गये। ___ यहां से मार्ग के गांवों में विहार करते हुए महाराज दमोह होकर कुंडलपुर 15 (बड़े बाबा) आये। यहां के मंदिरों के दर्शन कर बड़ी शांति मिली। यहां महाराज TE के दर्शन करने व उपदेश सुनने आसपास के बहुत से व्यक्ति आते थे। बहुत से व्यक्तियों को अनेक प्रकार के त्याग कराये व व्रत ग्रहण कराये। यहां से नैनागिरी और द्रोण गिरी क्षेत्र की वंदना पर महाराज वरुआ सागर आये, यहां से झांसी होते हुए दोनों महाराज भारत के सुप्रसिद्ध सिद्धक्षेत्र सोनगिरी तीर्थ । आये। सोनगिरी की वंदना कर आप लश्कर आ गये। वहां पर कई मनु को अंग्रेजी दवाई व बीड़ी सिगरेट पीने का त्याग कराया। यहां एक कन्या र पाठशाला खुलवाई। आनन्द सागर जी यहां से अलग हो गये। महाराज यहां से भिण्ड पधारे। यहां आश्रम खुलवाया, पहले से भी यहां कई संस्थाएं चल रही थी। भिण्ड से महाराज इटावा पधारे। ब्रह्मचारी प्रेमसागर जी महाराज के साथ में थे। इटावा से महाराज कानपुर पधारे, यहां कई श्रावकों ने महाराज के उपदेश से प्रभावित होकर कई व्रत ग्रहण किये। कानपुर में महाराज फूलबाग में ठहरे। यहां पर मुनीन्द्र सागर जी को मुनि दीक्षा दी गई। हैदराबाद 51 की एक चंपाबाई ने सप्तम प्रतिमा के व्रत ग्रहण किये और बाई ने दो प्रतिमा 57 LE के व्रत ग्रहण किये। यहां महाराज के प्रभाव से चतुर्थ कालीन समय होने LE लगा। लोगों ने कहा हमने आज तक ऐसे जैन साधु के दर्शन नहीं किये धन्य हैं ऐसे साधु को। ___ कानपुर से बाराबंकी आये, यहां ब्र. शीतलप्रसाद जी से समागम हो गया, दोनों के उपदेश होते थे। यहाँ से दरियावाद होकर महाराज जी अयोध्याजी आ गये। यहाँ के मंदिरों के दर्शन कर महाराज जी गोरखपुर आये। मार्ग में जाते समय नदी के किनारे धीवरों ने करीब पांच हजार मछलियां पकड़कर | नदी से बाहर निकाल रखी थीं, वे सब मछलियाँ तड़फ रही थीं, महाराज : श्री ने दया से द्रवित होकर धीमरों को अहिंसा का उपदेश दिया, फलस्वरूप धीमरों ने सब मछलियाँ नदी में डाल दी, जिससे सबकी रक्षा हो गई। धीमरों ने आगे से मछलियाँ नहीं मारने की प्रतिज्ञा की और मद्य मांस का त्याग किया और सबने अपने-अपने जालों को तोड़कर फेंक दिया। मार्ग में 1545454545454545454545454545454545454545454545 . त्याग HINI 1229 प्रशममूर्ति आचार्य शान्तिसागर छाणी स्मृति-ग्रन्थ 51
SR No.010579
Book TitlePrashammurti Acharya Shantisagar Chani Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKapurchand Jain
PublisherMahavir Tier Agencies PVT LTD Khatuali
Publication Year1997
Total Pages595
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationSmruti_Granth
File Size22 MB
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