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________________ 卐599999999999 : पशुओं की भक्ति . - . - 454545454545454545454545454545454 मुंगावली में एक दिन चालीस, पचास गाय बैल शांतिसागर महाराज के पास आकर महाराज की प्रदिक्षणा देकर नमस्कार कर शांतिभाव से चले गये। सबने यह अतिशय आंखों देखकर महाराज के तप का प्रभाव माना और लोगों की महाराज के प्रति श्रद्धा के भाव बढ़ गये। यहां बड़वानीजी गणेशप्रसाद जी और महोपदेशक पं. कस्तुर चन्द जी भी आ गये। यहां पर भी एक बकरा अपने मालिक मुसलमान को छोड़ कर अपनी रक्षा के लिये शांतिसागर महाराज के पास आ गया। महाराज ने उसकी रक्षा कराके अभयदान दिया। यह बकरा महाराज के साथ-साथ बहुत दूर तक विहार करता रहा। सैनी पशु भी अपने आपको मारने वाले और बचाने वाले - को पहचान जाते हैं और रक्षक की ही शरण में चले जाते हैं। यहाँ पर महाराज श्री का केश लोंच हुआ, पन्द्रह हजार के करीब लोग आये, महाराज के व विद्वानों के भाषण हुए बड़ी धर्म प्रभावना हुई, यहां से खुरई आये यहां श्राविका श्रम खुलवाया। यहां से बालावेहट, मालथौन आदि कई गांवों में होते हए 1 मडावरा साडूमल, महरौनी व पौरोजी अतिशय क्षेत्र में आये इस बीच आनन्दसागर जी मुनिराज व सूर्यसागर जी महाराज आकर मिल गये। यहां पर 75 मंदिर व चौबीसी भगवान के दर्शन कर महाराज टीकमगढ़ आये, यहां श्री पं. बंशीधर जी तथा कस्तूर चन्द जी के आ जाने से उपदेश का अच्छा प्रभाव पड़ा। यहां से बालावेहट आ गये। यहां पर श्री हरिप्रसाद जी मडावर वालों ने सप्तम प्रतिमा के व्रत ग्रहण किये। यहां से आप ललितपुर पधारे, यहां क्षेत्रपाल जी के मंदिर में ठहरे। यहां से आप देवगढ़ अतिशय क्षेत्र के TE दर्शन करने गये। यहां पर एक आदिनाथ भगवान की प्रतिमा महाराज के कहने से लोग उठाने लगे पर वह कई आदमियों से भी नहीं उठी तब महाराज के स्पर्श करने मात्र से प्रतिमा हल्की हो गई, सरलता से उठा ली गई। और वह मंदिर श्री में वेदी पर विराजमान की गई। ललितपुर का चातुर्मास देवगढ़ से चंदेरी के दर्शनकर महाराज पुनः ललितपुर आये। यहाँ क्षेत्रपाल । के मंदिर में शांतिसागर महाराज ने अपने संघ सहित चातुर्मास किया। सन् । F 1925 का वह वर्ष था। यहां चातुर्मास में बड़ी धर्म प्रभावना हुई। यहां पं. + 228 प्रशममूर्ति आचार्य शान्तिसागर छाणी स्मृति-ग्रन्थ चाचाटावा, 17 - - 15595595959595959 -
SR No.010579
Book TitlePrashammurti Acharya Shantisagar Chani Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKapurchand Jain
PublisherMahavir Tier Agencies PVT LTD Khatuali
Publication Year1997
Total Pages595
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationSmruti_Granth
File Size22 MB
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