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________________ 45454545454545454545454545454545 करते हुए खूणादरी आये। यहां पर श्री आदिनाथ भगवान की चतुर्थकाल की 14 TE प्रतिमा अति ही मनोज्ञ दर्शनीय है उनके दर्शन कर भाणंदा होते हुए नवासाय TE आये। यहां पर जेठ बदी 9 को आपका केशलोंच हुआ। उस समय खड़क के सब जैनी भाई आये थे। उन लोगों ने आपके उपदेश से सिगरेट, बीडी आदि व रात्रि का भोजन करना त्याग किया। यहां से महाराजश्री विहार कर देवल गांव होते हुए सूरपुर आये। यहां पर चतुर्थकाल की प्रतिमा का दर्शन 4 कर डूंगरपुर आये वहां से बेलीवाड़े पधारे । खड़क के बाइयों को काले कपड़े बदलकर लाल या सफेद पहिनकर श्री भगवान के दर्शन करने का नियम दिलाया। यहां से आप विहार करते हुए नागफणी पार्श्वनाथ जी आये। यह स्थान पहाड़ों के बीच स्थित है जिसके चारों तरफ जंगल है। यहां के दर्शन कर टाक चिलोटा, चिन्तामणी पार्श्वनाथ हुअटी होते हुए मोरेल आये। यहां ईडर के श्रावक भाई आपको चातुर्मास ईडर में करने के लिए लेने आये। LE सो यहां उनके साथ आषाढ़ सुदी अष्टमी को ईडर आकर के यहां चातुर्मास करना निश्चित किया। द्वितीय श्रावण शुक्ला चतुर्दशी को श्री महाराज का केशलोच मंदिर जी के हाल में हुआ। यहां तीन मंदिर गांव में तथा एक पहाड़ पर हैं। यहाँ 10-12 चैत्यालय भी हैं। सेठ केवलचंद राव जी के घर चैत्यालय है जो मंदिर जैसा है। शुद्धता के साथ उसकी पूजा करते हैं। जयपुर डा. कस्तूरचन्द कासलीवाल LE (अनुवादक) प्रशममूर्ति आचार्य शान्तिसागर छाणी स्मृति-ग्रन्थ 2121 15454545454545454545454 1995
SR No.010579
Book TitlePrashammurti Acharya Shantisagar Chani Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKapurchand Jain
PublisherMahavir Tier Agencies PVT LTD Khatuali
Publication Year1997
Total Pages595
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationSmruti_Granth
File Size22 MB
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