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________________ 卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐 भेज दिया । इनके चातुर्मास समाप्ति के पश्चात् जब वहाँ से विहार हुआ, तो समी ने आपको भावपूर्ण विदाई दी। वहाँ से आप संघ के साथ पालंगज होते हुए शिखरजी आये। यहाँ भी आपका अच्छा स्वागत हुआ। वीरसागर जी भी संघ में आ गये। संघ में चार मुनि हो गये। यहाँ सबने प्रतिज्ञा की कि कोई एकल विहार नहीं करेगा। संघ छोड़कर अकेला विहार नहीं करेगा। शिखरजी की वंदना करने के पश्चात् संघ आगे बढ़ गया और गिरिडीह, बैजनाथ, मंदारगिरी, भागलपुर, चम्पापुर विहार करते हुए पावापुरी आये। मुनियों का संघ सब तीर्थों की वंदना करते हुए गया जी आया। यहाँ विशाल पंचकल्याणक प्रतिष्ठा संपन्न करवाकर माघ शुक्ला पूर्णिमा को गया से विहार कर दिया। गया जी का मेला पूर्ण होने के पश्चात् श्री महाराज श्री वीरसागर तथा ज्ञानसागर जी के सहित विहार करते हुए रफीगंज आये। वहाँ आठ दिन रहे। वहाँ से मार्गवर्ती ग्रामों में विचरते हुए (काशी) बनारस गये। यहाँ महाराज श्री ने एकत्रित श्रावक-श्राविकाओं की धर्मोपदेश देकर सर्वमंदिरों के दर्शन किये । पुनः इलाहाबाद की तरफ संघ सहित प्रस्थान किया। मार्ग में मिर्जापुर के भाई भी दर्शनार्थ आये। महाराज श्री इलाहाबाद आकर कुंथुलाल जैनी भाई के बगीचे में ठहरे। यहाँ महाराज श्री ने 5 दिन रह कर धर्मोपदेश किया। यहाँ एक दिन आम सभा हुई जिसमें शहर के बड़े-बड़े जैन अजैन विद्वान सम्मिलित हुए थे। महाराज श्री के व्याख्यान का जनता पर अच्छा असर पड़ा 1 था। महाराज श्री ने आर्यसमाजियों की शंकाओं का भलीभांति समाधान किया, जिनको सुनकर सभी पंडितों तथा आर्य समाजियों ने दिगम्बर जैन मुनियों की बड़ी प्रशंसा की। यहाँ से महाराज श्री ने अपने संघ सहित फारबीसगंज की ओर विहार किया । यहाँ पर महाराज श्री से प्रभावित होकर एक वणिक अग्रवाल जैन धर्म में दीक्षित हुआ उसको श्री भगवान का चैत्यालय रखने का नियम दिलाया और शास्त्र स्वाध्याय की प्रतिज्ञा कराकर रात्रि भोजन का त्याग कराया फिर वीरसागर सहित विहार करते हुए महाराज श्री बांद्रा आये । यहाँ से कितने ही ग्रामों में विहार करते हुए आप मऊ रानीपुर, वरुआसागर होते हुए झांसी आये। यहाँ के श्रावकों को आपने धर्मोपदेश देकर एक जैन पाठशाला स्थापित करायी और अनेकों नियम दिलाये। फिर यहाँ से विभिन्न गाँवों में विहार करते हुए बजरंग गढ़ आये। यहाँ बजरंगगढ़ में श्री शांतिनाथ, कुंथुनाथ, अरहनाथ, इन तीन तीर्थकर भगवान की खड़गासन 15-16 फुट प्रशममूर्ति आचार्य शान्तिसागर छाणी स्मृति ग्रन्थ 555555555555555 209 AS! 4757!
SR No.010579
Book TitlePrashammurti Acharya Shantisagar Chani Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKapurchand Jain
PublisherMahavir Tier Agencies PVT LTD Khatuali
Publication Year1997
Total Pages595
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationSmruti_Granth
File Size22 MB
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