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________________ 555555555555555555555555 बंधु आये और कहने लगे कि आप यहाँ से चले जावें। यदि नहीं जायेंगे तो जबरन उठाकर बाहर फिकवा देंगे। लेकिन उन्होंने न तो अपना मौन तोडा और न बाहर गये। वे रात भर वहीं ध्यानस्थ रहे और प्रातःकाल शेष कुटों की वंदना करके वापिस नीचे उतर आये। यहीं पर दोनों मुनियों का केशलोंच हआ। तथा आठ दिन रहने के पश्चात् उनका गिरिडीह की ओर विहार हो गया। TE चातुर्मास आपने गिरिडीह में इस बार चातुर्मास किया। बड़ा आनन्द आया। चातुर्मास में ग्रंथों का विशेष अध्ययन किया। कलकत्ता से पं. झम्मनलाल जी आये थे। और भी कितने ही विद्वान थे। पं. जयदेव जी 22 दिन तक संघ में रहे। शंका समाधान में विशेष आनन्द आया। केशलोंच शहर के बाहर किया गया। गिरिडीह में सेठ खेतसीदास विशेष प्रभावित हुए और उनको सप्तम व्रत प्रतिमा दी गई। वे न्यायाधीश थे और उन्होंने अपनी संपत्ति को अपने बेटों में बांट दी। एक लाख रुपये अपने लिए रख लिये। दान भी खूब हुआ। मुनि श्री ने इस चातुर्मास में शिखर जी की लावणी की रचना की तथा दो शास्त्रों का संकलन किया। आपके उपदेशों का जैन एवं जैनेतर समाज पर खूब प्रभाव पड़ा। कितनों ने ही रात्रि भोजन त्याग किया तथा दर्शन एवं स्वाध्याय का नियम लिया। यहाँ के निवासियों को पहिले जैनधर्म का किंचित् भी ज्ञान नहीं था। मुनि श्री ने सबको जैन धर्म का ज्ञान कराया। यहाँ ज्ञानसागर जी को पुनः मुनि दीक्षा दी गई। यहाँ मुनिश्री ने छापे के ग्रंथों के स्थान पर हाथ से लिखे ग्रन्थों को पढ़ने का अभियान चलाया। तथा उन्होंने शास्त्रों का परिग्रह नहीं रखने का नियम लिया तथा जिस ग्रंथ का स्वाध्याय करना हो, मात्र उसे ही साथ रखने का नियम लिया। संघ के किसी भी ब्रह्मचारी को चन्दा चिट्ठा नहीं रहने का नियम दिलाया तथा श्रावकों द्वारा दिया हआ नौकर भी संघ में नहीं रखेंगे। एक बार मुनि श्री जब शौच के लिये जा रहे थे, तो मार्ग में एक आदमी IC 13 बकरे और 6 केकड़े लेकर जा रहा था। मुनि श्री ने उससे पूछा कि वह इतने जानवरों को कहां ले जा रहा हैं जब उसने कहा कि वह इन्हें बेचेगा। तो मुनिश्री के कहने से श्रावकों ने सभी बकरे मोल ले लिये और उन्हें शिखरजी T । प्रशममूर्ति आचार्य शान्तिसागर छाणी स्मृति-ग्रन्थ 208 55$4151545454545455555
SR No.010579
Book TitlePrashammurti Acharya Shantisagar Chani Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKapurchand Jain
PublisherMahavir Tier Agencies PVT LTD Khatuali
Publication Year1997
Total Pages595
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationSmruti_Granth
File Size22 MB
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