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________________ 454545454545454545454545454545 4 किया। यहाँ पांच दिन ठहर कर खूब धर्मोपदेश दिया। बजरंगगढ़ अतिशय क्षेत्र है। यहाँ कुंथुनाथ शान्तिनाथ अरहनाथ जी की 15-16 फीट की विशाल प्रतिमाएं हैं। आपने एक मुसलमान से यहाँ मांस मदिरा आदि का त्याग कराया। बजरंगगढ़ से आप पछाड़ गाँव आये। यहाँ आपका प्रभावशाली प्रवचन हुआ। एक कन्या विद्यालय खुलवाया गया। आपके दर्शनार्थ पं. कस्तूरचन्द जी उपदेशक भी आये थे। जैन बन्धु भी पर्याप्त संख्या में एकत्रित हुए। वहाँ से तराई, अमरोह होते हुए थूवोनजी भी आये। यहाँ 15. 16 तथा 20 फीट की विशाल प्रतिमाएं हैं। यह दर्शनीय अतिशय क्षेत्र दक्षिण में स्थित है। थूवोन 1 जी से चन्देरी गये जहाँ की चौबीसी दर्शनीय है तथा उसी रंग की है जिस । रंग के भगवान थे। सभी पदमासन स्थिति में हैं। चन्देरी शहर से एक मील F- दूरी पर एक पहाड़ी पर एक प्रतिमाजी है वह भी दर्शनीय है। यहाँ से अचलगढ़ 57 होते हुए मुंगावली आये। मुंगावली के बीच में 40-50 गाय बैल दौड़ते हुए LD गाँव से आये और मुनि श्री को बिना बाधा पहुँचाये प्रदक्षिणा लेकर वापिस चले गये। इस दृश्य को सभी लोग देखते रहे । मुंगावली में मुनिश्री पांच दिन 51 रहे। धर्मोपदेश हुआ कितने ही लोगों ने नियम लिये। वहां से बमोरा आये तथा यहां तीन दिन रहे। धर्मोपदेश देकर जब आपने विहार किया तो एक छोटा सा बकरा आपके पीछे हो लिया। जब उसके मालिक ने पकड़ लिया 57 तो भी वह उससे छुटकर फिर मुनि श्री की शरण में आ गया। तब मुनि श्री 1 ने श्रावकों को आदेश दिया इस बकरे को कोई मारने नहीं पावे। इसकी कीमत देकर उसे छुड़ा लेना। इससे मुनि श्री के हृदय में जीवों के प्रति कितनी करुणा थी इसका पता चलता है। : बीना की ओर विहार 4 जब मुनि श्री का बीना की ओर विहार हुआ तो आपके प्रति जैनों में अपूर्व श्रद्धा के भाव जागृत हो गये। बीना में आपका केश लोंच हुआ उस समय 15 हजार जैन बन्धु थे। इसके अतिरिक्त 5 हजार जैनेतर बन्धु थे। इस अवसर पर मुनि श्री का प्रभावक धर्मोपदेश हुआ जिसमें जैनाजैनों ने रात्रि भोजन, मांस, मदिरा और मिथ्यात्व क्रियाओं का त्याग कर दिया। इस अवसर पर - पं. कस्तूरचंद जी धर्मोपदेशक, पं. गणेश प्रसाद जी ब्रह्मचारी भी आये थे। उनके भी व्याख्यान हुये। बड़ा ही रोचक एवं धर्ममय समारोह हुआ। 201 प्रशममूर्ति आचार्य शान्तिसागर छाणी स्मृति-ग्रन्थ : । -II 151559455456
SR No.010579
Book TitlePrashammurti Acharya Shantisagar Chani Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKapurchand Jain
PublisherMahavir Tier Agencies PVT LTD Khatuali
Publication Year1997
Total Pages595
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationSmruti_Granth
File Size22 MB
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