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________________ 5555555 卐 555555 के दर्शन नहीं करते थे। आपने सबको देव दर्शन एवं पूजन का नियम दिलाया। इटारसी से आप बाबी गाँव आये। यहाँ आपका 5 दिन तक बराबर धर्मोपदेश होता रहा। यहाँ के श्रावकों में दर्शन करने का नियम नहीं था । आपने सब भाई बहिनों को प्रतिदिन देवदर्शन का नियम दिलाया। वहां से आप हुशंगाबाद आये । यहाँ भी 5 दिन ठहर कर धर्मोपदेश दिया तथा श्रावकों को दर्शन एवं पूजा के नियम दिलाये। यहां बहुत शंका समाधान हुआ । 4 फिर एक ऐसे गाँव में आपका विहार हुआ जहाँ मुसलमानों की अधिक बस्ती थी । शान्ति के लिये भोपाल से पुलिस आ गयी। वहाँ से तार भी आ गया कि नग्न साधुओं को कोई नहीं रोके । उनका निर्विरोध विहार होना चाहिए। मुनि श्री यहां दो दिन तक ठहरे और लोगों को मद्य, मांस का त्याग कराया। वहाँ से भेलसा आये और धर्मोपदेश से सबको लाभान्वित किया । फिर भोपाल आये। जब आप वहाँ से केवल तीन मील दूर थे। उसके पूर्व राजा ने अनाज का भाव 5 सेर निश्चित कर रखा था। प्रजा ने बहुत चारा जोरी की किन्तु राजा ने कोई ध्यान नहीं दिया, लेकिन जैसे ही मुनिश्री के नगर प्रवेश का समाचार मिला तब राजा ने स्वयमेव पांच सेर से आठ सेर कर दिया। उससे सभी लोगों ने मुनिश्री के प्रभाव को स्वीकार किया, सभी मुनि श्री के विहार में कोई रोक टोक न होवे ऐसी व्यवस्था करने लगे। राज्य से और बेगम साहिबा ने भी विशेष आदेश प्रसारित करवा दिये। यहाँ संघ पांच दिन तक रहा । खूब प्रभावना हुई। यहाँ मुनि श्री आनन्द सागर जी बडवानी आ गये और क्षुल्लक ज्ञान सागर जी ने पहिले ऐलक और फिर मुनि दीक्षा भी आपसे प्राप्त की । आपका संघ सहित भोपाल छावनी में विहार हुआ। यहाँ पर एक गाय जिसको एक कसाई मारने के लिए ले जा रहा था, उससे छूटकर जहाँ मुनि श्री ठहरे थे वहाँ आ गई। तत्काल माली ने रुपया देकर उसे छुड़ा लिया और एक पंचेन्द्रिय जीव को बचा लिया गया। फिर संघ कालापीपला आया । यहाॅ आप दो दिन ठहरे और वहाँ से सुजानपुर आ गये। यहाँ आपके धर्मोदेश प्रभाव से एक जैन पाठशाला स्थापित की गई। वहाँ से विसारा गये। यहाँ मुनि श्री ज्ञानसागर जी का केशलोंच हुआ। यहाँ अचानक विहार करते हुए बीनागंज पहुँचे। दो दिन ठहरने एवं धर्मोपदेश देने के पश्चात् राघोगढ़ आये। यहाँ फिर वह संघ आकर मिल गया और आपने बजरंगगढ़ की ओर विहार प्रशममूर्ति आचार्य शान्तिसागर छाणी स्मृति ग्रन्थ 200 155555 फफफफफफ
SR No.010579
Book TitlePrashammurti Acharya Shantisagar Chani Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKapurchand Jain
PublisherMahavir Tier Agencies PVT LTD Khatuali
Publication Year1997
Total Pages595
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationSmruti_Granth
File Size22 MB
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