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________________ P - - आचार्य श्री अपने प्रवचनों में अहिंसा, रात्रि भोजन निषेध, मद्य-मांस 2 का त्याग तथा अभक्ष्य भक्षण के त्याग पर बहुत जोर देते थे। साधारण भाषा में वे अपनी बात कहते जो सबको अच्छी लगती। जो व्यक्ति तर्क से समझाना चाहते, उन्हें तर्क से समझा देते । स्वयं भी अपनी चर्या में पूरी सावधानी रखते और जरा भी शिथिलता नहीं आने देते। उनकी यही हार्दिक इच्छा रहती थी कि जैन बंधु सच्चे अर्थों में जैन बनें तथा देश में अहिंसा का प्रचार हो और मद्य-मांस का कोई सेवन न करे। महाराजश्री ने मक्सी पार्श्वनाथ जाने के पश्चात् विहार करते हुए उज्जैन में प्रवेश किया। आपके आगमन से जैन समाज की खुशी का पार नहीं रहा। यहाँ आप घासीलाल कल्याणमल धर्मशाला में ठहरे और विहार करते हुए बड़नगर आये। उस समय यहाँ जैनों के 100 घर थे। जैनों की जनसंख्या 450 थी। दो मंदिर हैं। यहाँ का जैन औषधालय प्रदेश भर में प्रसिद्ध है। बड़नगर से विहार करते हुए रतलाम आये। यहाँ भी आचार्यश्री के विहार से अच्छी धर्मप्रभावना हुई रतलाम से आप बागड़ प्रदेश की ओर मुड गए और पुनः बॉसवाडा में प्रवेश किया। बाँसवाड़ा खाँदू ग्राम में भी बहुत से परिवार आ गये थे इसलिये यहाँ की जैन परिवार संख्या अच्छी थी। वहाँ के मंदिर में आपका केशलोंच हुआ, फिर यहाँ से चलकर परतापुर होते हुए सागवाड़ा पहुंच गए। परतापुर चातुर्मास-सन् 1927/संवत् 1984 उत्तर प्रदेश एवं मालवा के विभिन्न नगरों एवं गाँवों को अपनी चरण-रज से पवित्र करते हुए तथा अपने दिव्य संदेश से अहिंसा का प्रचार करते हुए आचार्यश्री का राजस्थान में पर्दापण हुआ और उन्होंने परतापुर (प्रतापपुर) में अपना चातुर्मास स्थापित किया। इसके पूर्व सागवाड़ा, इन्दौर, ललितपुर एवं गिरीडीह में चातुर्मास हो चुके थे। परतापुर तो आपका जाना पहचाना गाँव था। गाँव वाले जैन बन्धु एवं जैनेतर बन्धु आपके त्याग, तपस्या एवं साधना से परिचित थे। इसलिये जैसे ही आपके चातुर्मास की खबर गाँव में पहुँची, सभी आपकी जय बोलने लगे। चातुर्मास में गाँव की काया ही पलट TE गई। अधिकांश गाँव वाले मद्य-मांस का त्याग करके शाकाहारी बन गये। - जैन युधकों ने भी रात्रि में भोजन त्याग, जिन दर्शन करने एवं अभक्ष्य पदार्थ 卐 प्रशममूर्ति आचार्य शान्तिसागर छाणी स्मृति-ग्रन्थ 167 । 157491675454545454545454545454545
SR No.010579
Book TitlePrashammurti Acharya Shantisagar Chani Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKapurchand Jain
PublisherMahavir Tier Agencies PVT LTD Khatuali
Publication Year1997
Total Pages595
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationSmruti_Granth
File Size22 MB
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