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________________ 45454545454545454545454545454545 जसिंहपुरी, चन्द्रपुरी तीर्थों के दर्शन किए। समाज को अपने प्रवचनों से 4 लाभान्वित किया और इलाहाबाद की ओर बढ़ गये। इलाहाबाद में आचार्यश्री पाँच दिन ठहरे। एक बड़ी आम सभा हुई, जिसमें अनेक विद्वानों ने भाग लिया। सभा में ही विद्वानों एवं आर्यसमाजियों ने आपसे कितने ही प्रश्न किये, जिनका उचित समाधान पाकर सभी ओर आपकी विद्वता की प्रशंसा होने लगी। इलाहाबाद के पश्चात् आचार्यश्री बाराबंकी होते हुए करनी नगर में आये। मार्ग में ही ज्ञानसागरजी महाराज वापिस इलाहाबाद चले गये और वीरसागरजी सहित आगे बढ़ते रहे। करनी नगर में आपने एक अग्रवाल बन्धु को जैनधर्म पालने का नियम दिया। साथ ही घर में चैत्यालय बनाने, रात्रि में भोजन नहीं करने एवं पानी पीने का भी नियम दिलाया। इटावा में आचार्यश्री का अहिंसा पर विशेष प्रवचन हुआ। आपके प्रवचनों से प्रभावित होकर एक कहार ने मछली मारना, मांस मदिरा खाना-पीना छोड़ दिया और महाराजश्री के समक्ष मछली फँसाने का जाल भी तोड कर फेंक दिया। इसी तरह कानपुर में एक हलवाई को रात्रि में मिठाई नहीं बनाने तथा दिन में भी पानी छानकर काम में लेने का नियम दिलाया। इसके पश्चात् संघ बांरा आया । यहाँ भी आपके कई प्रवचन हुये। उसके पश्चात् मऊरानीपुर, बरुआसागर होते हुए भी झाँसी आये। 4 बुन्देलखण्ड आने के पश्चात् आपने प्रवचनों की अमृत वर्षा करते हुए छोटे-बड़े गाँवों में विहार किया। करेरा ग्राम में आपने एक धार्मिक पाठशाला की स्थापना कराई। अमोल गॉव में वहाँ के ठाकुर को मांस नहीं खाने एवं मद्यपान नहीं करने के नियम दिलवाये । वहाँ से कोलारस शिवपुरी होते हुए गुना आ गये। गुना शहर जैन समाज का केन्द्र है। यहाँ पर आचार्यश्री ने अपने प्रवचनों से सबको प्रभावित कर लिया और कुछ दिनों तक ठहरने के पश्चात वहाँ से बजरंगगढ आये। बजरंगगढ दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र है जहाँ शान्तिनाथ, कुंथुनाथ, अरहनाथ की 15 फिट की खड्गासन प्रतिमायें हैं। बजरंगगढ़ में वीरसागर जी महारांज रुक गये और आचार्य श्री शेष संघ के साथ हटवाई, व्यावर होते हुए सारंगपुर आये । सारंगपुर में आपके प्रवचनों से अच्छी धर्मप्रभावना हुई। एक ब्राह्मण वकील ने पूर्णतः जैनधर्म स्वीकार किया। 454545 166 प्रशममूर्ति आचार्य शान्तिसागर छाणी स्मृति-ग्रन्थ । 19595555555555555559
SR No.010579
Book TitlePrashammurti Acharya Shantisagar Chani Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKapurchand Jain
PublisherMahavir Tier Agencies PVT LTD Khatuali
Publication Year1997
Total Pages595
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationSmruti_Granth
File Size22 MB
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