SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 182
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 5 !!!!!!! अधिक अन्तर नहीं था। एक दृष्टि में यदि हम जानना चाहें तो उनका उद्भव इस प्रकार हुआ था आचार्य शान्तिसागरजी दक्षिण आचार्य शान्तिसागरजी छाणी जन्म क्षुल्लक मुनि आचार्य समाधि ईस्वी दीक्षा दीक्षा पद प्राप्ति 1872 1888 1915 1920 1924 1955 1922 1923 1926 1944 इतना विशेष है कि आचार्य शान्तिसागरजी दक्षिण ने क्षुल्लक दीक्षा के थोड़े दिन उपरान्त गिरनार पर्वत पर वस्त्र -खण्ड त्याग कर ऐलक पद अंगीकार कर लिया और बाद में कई वर्षों तक उसी वेष में वे विहार करते रहे। यह भी ध्यान में रहना चाहिये कि यद्यपि उन्हें "चारित्र - चक्रचर्ती" की उपाधि से कई वर्षों बाद विभूषित किया गया था, पर कालान्तर में वह "चारित्र - चक्रवर्ती" सम्बोधन उनके लिए रूढ़ हो गया और उस नाम से ही उनकी पहिचान होने लगी । इस प्रकार साधना के क्षेत्र में चारित्र - चक्रवर्ती आचार्य शान्तिसागरजी, आचार्य छाणी महाराज से हर पद पर वरिष्ठ थे । छाणी महाराज ने उनकी इस वरिष्ठता को सदा उदारता पूर्वक सम्मान दिया। दोनों आचार्यों में एक दूसरे के लिए संत-सुलभ वात्सल्य और आदर का भाव था । 130 उत्तर-भारत में विचरित प्रथम दिगम्बर मुनिराज छाणी महाराज को उत्तर भारत में विहार करने वाला प्रथम दिगम्बर आचार्य कहा जा सकता है। परन्तु इसमें इतना ध्यान रखना होगा कि उनके मुनि दीक्षा लेने के सात-आठ वर्ष पूर्व, सन् 1914 या 15 में, दक्षिण के एक और मुनि श्री अनन्तकीर्तिजी निल्लीकर सम्मेदाचल की वन्दना के लिये आ चुके थे। उत्तर प्रदेश में अलीगढ़ तथा आगरा आदि नगरों में रुकते हुए मुरेना पहुँचे थे। उनका उत्तर में प्रवास बहुत ही थोड़े दिनों का रहा। मुरेना में दुर्घटनावश पैर का कुछ भाग जल जाने के कारण उन्होंने अत्यन्त दृढ़तापूर्वक सल्लेखना धारण करके वहीं अपना शरीर त्याग दिया। वे अपने प्रति एकदम निर्मम और कठोर तपस्वी थे । वास्तव में तो छाणी महाराज ही ऐसे प्रथम मुनिराज थे, जिन्होंने उत्तर प्रशममूर्ति आचार्य शान्तिसागर छाणी स्मृति ग्रन्थ 1994-967-57! फफफफफफफफफफफफ
SR No.010579
Book TitlePrashammurti Acharya Shantisagar Chani Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKapurchand Jain
PublisherMahavir Tier Agencies PVT LTD Khatuali
Publication Year1997
Total Pages595
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationSmruti_Granth
File Size22 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy