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________________ 59595955555555559595994 का भी सौभाग्य नसीब नहीं हआ है। इस हालत में मेरी उनके जीवन चरित्र के विषय में सहसा कुछ लिखना प्रायः असंगल ही है। पर ब्रह्मचारीजी ने जो कुछ जीवन घटनाएँ इन साधु महाराज के इस जीवन चरित्र में लिखी हैं, उनके अवलोकन से इस असंगतपने का भय दूर हो गया है।" -"मुझे यह कहने में भी कुछ संकोच नहीं है कि शान्तिसागरजी महाराज इस काल में एक साधु-रत्न हैं। उनसे धर्म की प्रभावना है और वे हमारे हित-चिन्तक हैं। उनकी भक्ति और विनय करके हम पुण्य का उपार्जन इस पंचमकाल में भी कर सकते हैं। जिन दिगम्बर मुनिराजों की कथाएँ हम पुरातन ग्रन्थों में ही पढ़ते थे, उनके प्रत्यक्ष दर्शन करने का सुअवसर आज प्राप्त हो गया है, यह हमारा अहो-भाग्य है।" मेरा आग्रह है कि बाबू कामताप्रसादजी की उपरोक्त पंक्तियों को ही मेरे इस आलेख की प्रस्तावना के रूप में पाठक स्वीकार करें। 51 देश-काल के परिप्रेक्ष्य में उनका जीवन-दर्शन आचार्य शान्तिसागरजी छाणी की जीवनगाथा वास्तव में आस्था, निष्ठा, साहस और दृढ़ संकल्पों की गाथा है। उनके व्यक्तित्व की विशेषताओं को समझने के लिये हमें उनके जीवन की हर घटना को तात्कालिक समय और समाज के परिप्रेक्ष्य में ही समझना होगा। इस दृष्टिकोण से विचार करें तो हम पायेंगे कि छाणी महाराज का प्रत्येक निर्णय अडिग-आस्था और अदम्य-साहस के साथ अपिरिमित आत्म-विश्वास से भरा हआ होता था। प्रायः छाणी महाराज के व्यक्तित्व को उनके समकालीन चारित्र-चक्रवर्ती पूज्य आचार्य श्री शान्तिसागरजी महाराज के साथ तुलना करके देखा जाता है। इस प्रकार की दृष्टि से न तो इतिहास को समझा जा सकता है और न ही किसी के व्यक्तित्व का सही मूल्यांकन सम्भव हो सकता है। इसलिये दोनों महात्माओं का, एक दूसरे से निरपेक्ष और निष्पक्ष मूल्यांकन करके ही उन्हें समझना चाहिए, तभी उनके वंदनीय-व्यक्तित्व का सही दर्शन हो जा सकेगा। फिर भी सही जानकारी के लिए दोनों पुण्य-पुरुषों के जीवन की LE महत्वपूर्ण घटनाएँ हमारी दृष्टि में रहना भी आवश्यक हैं। प: समकालीन दो आचार्य शान्तिसागर चारित्र-चक्रवर्ती आचार्य शान्तिसागरजी (दक्षिण) यद्यपि आयु में आचार्य TE - शान्तिसागरजी छाणी से पन्द्रह वर्ष बड़े थे, परन्तु दोनों के दीक्षा संस्कारों - प्रशममूर्ति आचार्य शान्तिसागर छाणी स्मृति-ग्रन्थ 129 ETरा रा . |
SR No.010579
Book TitlePrashammurti Acharya Shantisagar Chani Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKapurchand Jain
PublisherMahavir Tier Agencies PVT LTD Khatuali
Publication Year1997
Total Pages595
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationSmruti_Granth
File Size22 MB
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