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________________ 154545454574945045145746745045145454545 सविनय नमोस्तु आज से सौ साल पहले तक उत्तर भारत में दिगम्बर मुनि-परम्परा का प्रायः अभाव-सा हो गया था, दूर-दूर तक कहीं भी दिगम्बर मुनि का अस्तित्व सुनने में भी नहीं आता था। परन्तु उन्नीसवीं शताब्दी का अन्तिम चरण उत्तर भारत के लिये मुनि-परम्परा का सूत्रपात करने वाला समय सिद्ध हुआ। सन 1872 ईसवी में चारित्र-चक्रवर्ती आचार्य शान्तिसागर जी महाराज का जन्म हुआ और 15-16 वर्षों के अंतराल से सन् 1888 में आचार्य शान्तिसागर जी छाणी महाराज का जन्म हुआ। इन दोनों आचार्यों ने अपनी तपस्या से साधु-संघों को गौरवान्वित किया और अपने मंगल-विहार से उत्तर भारत में दिगम्बर मुनि-परम्परा की पुनर्स्थापना का ऐतिहासिक कार्य किया। इन दोनों - आचार्यों की सुदीर्घ शिष्य-परम्परा भी चली, जिसने समूची बीसवीं शताब्दी को प्रभावित किया है। प्राचीन काल से ही ऐसी पद्धति रही है कि हमारे आचार्यों और मुनिराजों का विधिवत इतिहास न लिखा गया, न संकलित किया गया। यही कारण है कि आज हमारे महान आचार्यों का कृतित्व तो उपलब्ध है परन्तु प्रायः उन सबके प्रामाणिक जीवन-वृत्त से हम वंचित ही हैं। पता नहीं क्यों, हमारे आचार्यों और मनिराजों ने एक ओर जैन-साहित्य में अपनी क्षमता के अनुसार अभिवृद्धि तो की परन्तु दूसरी ओर अपने गुरु का जीवन-वृत्त लिखने का प्रयास प्रायः - उन्होंने नहीं किया। इतिहास के प्रति हमारे संतों की यह उदासीनता वर्तमान संत-समुदाय में भी वैसी ही दिखाई देती है। हमारा सौभाग्य है कि चारित्र-चक्रवर्ती आचार्य शान्तिसागरजी महाराज के संदर्भ में जीवन-वृत्त की कोताही नहीं रही। इसका कारण शायद यह रहा कि उनके जीवनकाल में ही उनकी शिष्य-मण्डली में मुनियों, त्यागियों और विद्वानों का एक अच्छा समुदाय तैयार हो चुका था, जिन्होंने अपने गुरु का जीवन-वृत्त यत्र-तत्र लिपिबद्ध कर दिया। बाद में आचार्यश्री के जीवनीकार पं. सुमेरुचंद्रजी दिवाकर ने उस सारी सामग्री को संकलित और व्यवस्थित करके एक वृहद ग्रन्थ के रूप में निबद्ध किया और उस महान जीवनी को "चारित्र-चक्रवर्ती" नाम देकर जैन साहित्य की स्थायी सम्पदा बना दिया। यह और बात है कि आज वह पावन जीवनी अनेक वर्षों से 47 124 प्रशममूर्ति आचार्य शान्तिसागर छाणी स्मृति-ग्रन्थ - 955HHHHHH
SR No.010579
Book TitlePrashammurti Acharya Shantisagar Chani Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKapurchand Jain
PublisherMahavir Tier Agencies PVT LTD Khatuali
Publication Year1997
Total Pages595
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationSmruti_Granth
File Size22 MB
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