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________________ धरा धन्य हो गई तुम्हें पा... धन्य धन्य सौ बार धन्य वह मात पिता अरु नगर जहान, उचित हुआ मंगलमय रविकर मिटा मोह माया अज्ञान। राजस्थान वागड़ प्रदेश में छाड़ी मंगल ग्राम महान, सम्वत उन्नीस सौ पैंतालीस कार्तिक वदि एकादश जान ।। धन्य धन्य उन शान्ति सिन्धु को कोटिक कोटि नमन है, पिता धन्य हैं भागचंद्र माँ मणिका हुई चमन है। केवलदास सुहाना जिनका नाम हुआ हितकारा है, नेमिनाथ की गाथा सुनकर जिसने संयम धारा है।। प्रशममूर्ति जग जिनको करता आत्मनिधि के आगर थे, उपसर्ग विजेता तपः साधना समता गुण के सागर थे। उपदेशों से सदाचार की संयम धार बहाई है, सदाचरण मय सुखद ज्ञान की मंगल ज्योति जलाई है।। कोटम्विक ममता को त्याग सिद्धातम पद पाने को चलते फिरते युग के अर्हत तुम्हें नमन सुख पाने को। जब तक नभ में दीप्त दिवाकर भू पर सागर लहराएं, युग युग के श्रावक जन नितप्रति तव चरणन झुक सुख पाएँ।। 4 वीतरागवाणी मासिक कार्यालय टीकमगढ़ (म.प्र.) पं. बर्द्धमान कुमार जैन सोरया 卐प्रशममूर्ति आचार्य शान्तिसागर छाणी स्मृति-ग्रन्थ 5454545454545454545454545454575
SR No.010579
Book TitlePrashammurti Acharya Shantisagar Chani Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKapurchand Jain
PublisherMahavir Tier Agencies PVT LTD Khatuali
Publication Year1997
Total Pages595
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationSmruti_Granth
File Size22 MB
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