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________________ 45146145454545454545455461997199745 श्रद्धा-सुमन अनादिनिधन णमोकारमंत्र का स्मरण/ध्यान करते समय जब "णमो लोए सव्वसाहणं" इस पद का उच्चारण होता है तब ध्यान जाता है. कि जिनमुद्रा अनादि काल से है, क्योंकि इस मुद्रा के बिना समस्त कर्मों का TE क्षय करने वाला ध्यान नहीं होता, इसको समीचीन पालने के लिए 28 मूलगुण पालन किये जाते हैं। मूलगुण आत्मसिद्धि के लिए आवश्यक हैं। साधु इनका निरतिचार पालन कर भावों की निर्मलता करते हैं, और शुक्लध्यान को प्राप्त करता है, क्योंकि शुक्लध्यान प्राप्त किये बिना किसी को भी मोक्ष/निवार्ण की प्राप्ति नहीं होती, अतएव मुक्ति प्राप्ति के लिए मुनिमुद्रा आवश्यक है। जिन्हें आत्मकल्याण की भावना हुई, वही इस मार्ग के पथिक बनें, जब मुनिमार्ग प्रायः लुप्त जैसा था तब एक प्रकाशमान किरण का उदय हुआ, सं. 1945 (सन् 1888) कार्तिक कृष्णा 11 को बागड़ प्रदेश राजस्थान के छाणी ग्राम में श्रीपिता भागचन्द जी, माता माणिकबाई ने पुत्ररत्न उत्पन्न किया और केवल दास नाम रखा। जन्मस्थान पर ही सामान्य शिक्षा प्राप्त की। भगवान् देवाधिदेव नेमिनाथ स्वामी की वैराग्य घटना को सुनकर संसार की असारता पर चिंतन प्रारम्भ हुआ, उसी रात्रि में स्वप्न देखे 1. सम्मेदशिखर जी की वन्दना 2. भगवान् बाहुबली की अष्ट द्रव्य से पूजा करने के भाव, इन स्वप्नों T से सुप्त आत्मा में कल्याण करने वाली भावना का दिवाकर प्रकाशमान हुआ, तो क्षेत्रराज श्री सम्मेदशिखर जी के स्वर्णभद्र कूट पर केशलुंचन कर आजीवन - ब्रह्मचर्य व्रत, सं. 1972 में गढ़ी (बांसवाड़ा) में श्री 1008 भगवान आदिनाथ के समक्ष-क्षुल्लक दीक्षा ग्रहण की। नाम शान्तिसागर रखा गया, वैराग्य भाव निरंतर वृद्धिगत होता गया और सं. 1980 में आदिनाथ जी के समक्ष सिंह वृत्ति स्वरूप मुनिमुद्रा धारण कर ली और अनेक देशों में विहार कर मानव मात्र के कल्याण की भावना का प्रचार-प्रसार करते हुए सं. 1985 में आचार्य पद से विभूषित हुए। अनेक उपसर्ग आने पर भी विचलित नहीं हुए और 21 साधना करते हुए मुनिमार्ग को प्रकाशमान किया। ऐसे महान उपसर्गविजेता आचार्य श्री के चरणों में सादर श्रद्धासुमन - अर्पित करता हूँ। टीकमगढ़ पं. गुलाबचन्द जैन पुष्प 198 प्रशममूर्ति आचार्य शान्तिसागर छाणी स्मृति-ग्रन्थ । 54976545454545454545454545454545
SR No.010579
Book TitlePrashammurti Acharya Shantisagar Chani Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKapurchand Jain
PublisherMahavir Tier Agencies PVT LTD Khatuali
Publication Year1997
Total Pages595
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationSmruti_Granth
File Size22 MB
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