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________________ 4414514614745454545454545454545 TE भारत भ्रमण को निकल पड़े और प्राणी मात्र को मोक्ष का उपदेश-देकर मोक्ष - मार्ग में लगाया, वर्तमान में विलुप्तप्राय मुनि मार्ग के दर्शन कराए। दैगम्बरी दीक्षा में केशलोंच का बहुत बड़ा महत्त्व बताया, केशों को अपने हाथों से उखाड़ कर ही दीक्षा ली जाती है, यह भी दिगम्बर साधु की एक प्रकार की कायकलेश नामा व्रत के अर्न्तगत कठिन तपस्या का रूप है, जो इस कठिन कार्य में खरे उतरते हैं, वे ही दि. मुनि बन पाते हैं। आचार्य शान्तिसागर जी छाणी ने भी ब्रह्मचर्य व्रत लेते समय सम्मेदाचल के स्वर्णभद्र कूट पर भगवान पार्श्वनाथ के समक्ष भगवान से प्रार्थना की मुझे बह्मचर्य व्रत दो और यह कह कर केशों को उखाड़ फेंका। साधारण एवं सीमित वस्त्रादि ST की प्रतिज्ञा कर सम्पूर्ण परिग्रह का त्याग कर दिया और दि. मुनि की कठोर तपस्या का अभ्यास करने लगे। कालान्तर में बांसवांडा ग्राम में निर्वेग को प्राप्त हो भगवान आदिनाथ के सामने क्षुल्लक दीक्षा ले ली। थोड़े से कालोपरान्त बांसवाडा में चार्तुमास किया। 30 दिन के निर्जल उपवास किए। उपवास के बाद समस्त जैन समाज के सामने केशों को लांच करके संसारोच्छेदनी दैगम्बरी दीक्षा भगवान आदिनाथ के सामने ग्रहण कर ली।। आत्म साधना में लगकर, नगर-नगरान्तर-ग्रामों में पदविहार कर, अहिंसा TE धर्म का प्रचार करते हुए बुन्देलखण्ड के बीना नगर में पधारे, अलोकिक तेज T: ना से देदीप्यमान महान् दि. मुनि के दर्शन कर जन-जन मुग्ध हो गया, वहीं पर ऋषिराज के "केशलोंच का निश्चय हो गया और समाज द्वारा ग्रामान्तरों, नगरों को चिट्टियां पहंचा दी गई। निश्चित समय और केशलोंच के दिन बीनानगर में जैन समाज का जमघट लग गया, केशलोंच हुए और अपार जन समूह ने सर्वप्रथम दि. मुनि के, तथा उनकी कठिन साधना, तपस्या का दर्शन किया और अपने आपको धन्य माना। जय जय ध्वनि से आकाश ध्वनित हो उठा। उस समय अंग्रेजों का राज्य था, बीना जंक्सन रेलवे की सबसे बड़ी । स्टेशन थी। आज भी है। कुछ अंग्रेज रेल को रुकवाकर जल्से को देखने - आये थे। अंग्रेज भाईयों ने कैमरे फोटो भी खींचे और एक अंग्रेज इतना प्रभावित हुआ, कि मुनि चरणों में आकर बैठ गया और अपने कल्याण की भिक्षा मांगी, 4 सभी लोग बड़ी दिलचस्पी से देख रहे थे, महाराज ने उसे अहिंसा की परिभाषा बताई और मांस न खाने की प्रतिज्ञा दिलाई। मुझे याद नहीं कितने अंग्रेजों 91 प्रशममूर्ति आचार्य शान्तिसागर छाणी स्मृति-ग्रन्थ - 5454545454545454545454545454545 -IIFIE
SR No.010579
Book TitlePrashammurti Acharya Shantisagar Chani Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKapurchand Jain
PublisherMahavir Tier Agencies PVT LTD Khatuali
Publication Year1997
Total Pages595
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationSmruti_Granth
File Size22 MB
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