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________________ Pारा, DIRU श्रद्धाञ्जलि मुनि या श्रमण अवस्था जैन धर्म की चतुर्विध संघ व्यवस्था का प्रमुख LE घटक है और यही संघ व्यवस्था जैनों की समाज व्यवस्था का मूल आधार है। जैन परम्परा में चतुर्विध संघ मुनि, आर्यिका, श्रावक और श्राविका-की यह धारा प्राचीन काल से निरन्तर प्रवाहमान है। मुनिगण जैन संस्कृति तथा परम्परा के संवाहक, प्रथम एवं महत्त्वपूर्ण स्रोत हैं। उक्त सुदीर्घ परम्परा के संवर्द्धन एवं विकास में दिगम्बराचार्य श्री शान्तिसागर महाराज (छाणी) का प्रमुख तथा अविस्मरणीय योगदान है। छाणी स्मृति ग्रन्थ प्रकाशन के सुमंगल अवसर पर मेरी सविनय श्रद्धाञ्जलि। डॉ. कमलेश जैन वाराणसी श्रमण-परम्परा के दीप आ. शान्तिसागर जी छाणी इस युग के प्रमुखतम आचार्यों में थे। इस TE शताब्दी के प्रारंभ में श्रमण परम्परा को पुनर्जीवित करने में उनका बहुत बड़ा - योगदान रहा। श्रमण परम्परा के दीप को इस शताब्दी में प्रज्वलित करने में उन्होंने जहां अपना योगदान दिया, वहीं दूसरी ओर उनकी इस ज्योति TE से अनेकों दीप प्रज्वलित हुए। उन प्रशम मूर्ति आचार्य के चरणों में मैं अपनी TE - भावभीनी श्रद्धाञ्जलि अर्पित करता हूँ। उनके इस अभिनन्दन ग्रन्थ से उनके + व्यक्तित्व व कृतित्व के बारे में समाज को जो अभी कम जानकारी है, उसकी - पूर्ति हो सकेगी। 15454545454545 LF मैनपुरी, उ.प्र. डॉ. सुनील चन्द जैन - प्रशममूर्ति आचार्य शान्तिसागर छाणी स्मृति-प्रथा ािाा . -1PIPE
SR No.010579
Book TitlePrashammurti Acharya Shantisagar Chani Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKapurchand Jain
PublisherMahavir Tier Agencies PVT LTD Khatuali
Publication Year1997
Total Pages595
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationSmruti_Granth
File Size22 MB
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