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________________ 1 श्रीमल्लिनाथस्तुति । अर्थ- हे प्रभो ! जो लोग आपके अत्यंत मधुर धर्मरूपी अमृतको पीते हैं, सुख देनेवाले आपके नामको कहनेवाले बीजाक्षर मंत्रों का स्मरण करते हैं, जो लोग आपके कहे हुए धर्मतत्वोंको मदा पढते रहते हैं, जो लोग आपके चरणकमलोंकी सदा पूजा करते रहते हैं, जो जीव आपके निर्मल मोक्ष मार्ग में चलते हैं और आपकी भव्य मूर्तिको हृदय में सदा धारण करते रहते हैं, वे भव्यजीव अनुक्रमसे शीघ्र ही सुख देनेवाले स्वर्ग और मोक्षको प्राप्त कर लेते हैं । 6.60 दुष्टैर्नितान्तैः खलकर्ममलैः प्रपीडितो दुःखमये भवान्धौ । दुगंधदेहे खलु पातितोस्मि तं कर्ममलं च विजित्य शीघ्रम् ॥७॥ यथार्थमलो भवि मल्लिनाथो विचार्य चैवं पत्तितोस्मि भक्त्या । त्वत्पादपद्मे सुखशान्तिदे च मां पाहि तेभ्यश्च दयासमुद्र ॥८॥ अर्थ- हे दयाके सागर भगवन् मल्लिनाथ ! अत्यंत दुष्ट ऐसे इन कर्मरूपी मल्लोंने मुझे बहुत दुःख दिया है, दुःखरूपी संसारसमुद्र में पटक दिया है और दुर्गधमय डम शरीर में पटक दिया है । हे नाथ ! आपने उसी कर्मरूपी महामलको जीत लिया है और इसीलिये इस संसार में यथार्थ मह कहलाते हैं ।
SR No.010578
Book TitleChaturvinshati Jin Stuti Shantisagar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalaram Shastri
PublisherRavjibhai Kevalchand Sheth
Publication Year1936
Total Pages188
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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