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________________ श्रीचतुर्विशतिजिनस्तुति । इस दुःखमय संसार सागरमें सब जीवोंको डालनेवाले निर्दय और महाअभिमानी कर्मरूप मल्लको वैराग्यरूपी शस्त्रसे आपने ही मारा है और इसीलिये आप इस संसारमें समस्त योद्धाओं के स्वामी बनगये हैं। कारितापं शमितुं समर्था स्तवप्रसादाद्धि निजात्मनिष्ठाः । नरामरेन्द्रा मुनयो बभूवु रचिन्त्यरूपो महिमा त्वदीयः ॥४॥ अर्थ- हे भगवन् ! इन्द्र, चक्रवर्ती और मुनिराज सब आपके ही प्रसादसे कर्मरूपी शत्रुओंके संतापको शांत करनेके लिये समर्थ हो जाते हैं और अपने आत्मामें तल्लीन हो जाते हैं । हे प्रभो! आपकी महिमा भी अचिंतनीय है, किसीके चिंतनमें नहीं आसकती। धामृतं ते मधुरं पिबन्तः त्वद्वीजमंत्रं सुखदं स्मरन्तः। त्वद्धर्मतत्त्वं सततं पठन्तः _त्वत्पादपद्मौ खलु पूजयन्तः ॥५॥ त्वन्मोक्षमार्गे विमले चरन्तः त्वद्भव्यमूर्ति हृदि धारयन्तः । ते सव्यजीवाः सुखदं लभन्ते स्वर्गापवर्ग सपदि क्रमेण ॥६॥
SR No.010578
Book TitleChaturvinshati Jin Stuti Shantisagar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalaram Shastri
PublisherRavjibhai Kevalchand Sheth
Publication Year1936
Total Pages188
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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