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________________ [४] मातापितावोंने आग्रह किया फि पुत्र! तुम्हे लोकिक विवाह भी करके हम लोगोंकी आखोंको तृप्त करना चाहिये। आशोधनभयसे इच्छा न होते हुए भी रामचंद्रने विवाहकी स्वीकृति दी। मातापितावोने विवाह किया। रामचंद्रको अनुभव होता था कि म विवाह फर बड़े बंधन में पढगया हूं। विशेष विषय यह है कि बाल्यकालो संस्कारांसे मुष्ट होनेके कारण यौवनावस्थामें भी रामचद्रको फोई व्यसन नही था, व्यसन था तो केवल धर्मचर्चा, सत्संगति व भार स्वाध्यायका था। बाकी व्यसन तो उनसे घयराफर दूर भागते थे। इस प्रकार पञ्चीस वर्ष पर्यंत रामचंद्रने किसी तरह घरमे पास किया परंतु बीच २ में मनमे यह भावना जागृत होती थी फि भगवन ! में इस ग्रहधनसे फर छूट, जिनदीक्षा लेनेका भाग्य पथ मिलेगा? वह दिन कब मिलेगा जय कि सवमंगपरित्याग पार में स्वपर फल्याण कर सम देवान इस बीचमे मातापिनायोफा बगवामा विगराल फाटकी कृपामे एक भाई व बहिनने भी विटाली। अय रामचद्रका चित्त और भी उदाम हुआ। मा बंधन हट गया, अब समारकी अस्थिरताका उनहोने म्यानुभवमं पा नियनिया और उसका चित्त और भी धर्मगार्गपर गियर हुआ। एननमे भाग्योदय सेनापुग्मं प्रातस्मरणीय पाद आचार्य शानिमागर महाराजा पदार्पण हुआ। बोरगी पीकर मुनिको देखकर रामचंद्र चित्त ममाम्भोगमे विधि मापन होगई। प्राप्त मत्ममागमको मोना उचित नही AMAR होने श्री आचार्य घरण जन्म प्रदाचर्य प्रमो प्ररिया।
SR No.010578
Book TitleChaturvinshati Jin Stuti Shantisagar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalaram Shastri
PublisherRavjibhai Kevalchand Sheth
Publication Year1936
Total Pages188
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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