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________________ [५] सन १९२५ फरवरी महीनेकी बात है। श्रवणवलगाल महाक्षेत्र में श्री बाहुबलिस्वामीका महामस्तकाभिषेक था। इस महाभिषेकके समाचार पाकर ब्रह्मचारिजीने वहां जानेकी इच्छा की । श्रवणबेलगुल जानेके पहिले अपने पास जो कुछ भी संपत्ति थी उसे दानधर्म आदि कर उसका सदुपयोग किया। एवं श्रवणबेलगुलमें आचार्य शांतिसागर महाराजसे क्षुल्लक दीक्षा ली, उस समय आपका शुभनाम क्षुल्लक पार्श्वकीर्ति रखागया। ध्यान, अध्ययनादि कार्यो में अपने चित्तको लगाते हुए अपने चारित्रमें आपने वृद्धि की व आचार्यचरणमें ही रहने लगे। चार वर्षबाद आचार्यपादका चातुर्मास कुंभोज ( बाहुबलि पहाड ) में हुआ । उससमय आचार्य महाराजने क्षुल्लकजीके चारित्रकी निर्मलता देखकर उन्हे ऐल्लक जो कि श्रावकपदमें उत्तम स्थान है, उस दीक्षासे दीक्षित किया। बाहुबलि पहाडपर एक खास बात यह हुई कि संघभक्तशिरोमणि सेठ पूनमचंद घासीलालजी आचार्यवंदनाके लिये आये, और महाराजके चरणों में प्रार्थना की कि मैं सम्मेदशिखरजीके लिये संघ निकालना चाहता हूं। आप अपने संघसहित पधारकर हमें सेवा करनेका अवसर दें। आचार्य महाराजने संघभक्तशिरोमणिजीकी विनंतिको प्रसादपूर्ण दृष्टिसे सम्मति दी। शुभमुहूर्तमें संघने तीर्थराजकी वंदनाके लिये प्रस्थान किया। ऐल्लक पार्श्वकीर्तिने भी संघके साथ श्री तीर्थराजकी वंदनाके लिये विहार किया। सम्मेद शिखरपर संघक पहुंचनेके बाद वहांपर विराट उत्सव हुआ। महासभा व शास्त्री परिषतके अधिवेशन हुए। यह
SR No.010578
Book TitleChaturvinshati Jin Stuti Shantisagar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalaram Shastri
PublisherRavjibhai Kevalchand Sheth
Publication Year1936
Total Pages188
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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