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________________ ४६ श्रीशान्तिसागरचरित्र । पुत्रोंकी प्रार्थनासे उस क्षेत्रको शुभ समझकर आचार्य शांतिसागरने अपने समस्त संघके साथ आनंदसे वर्षायोग धारण किया। तथा उन्हीं गुरुवर आचार्य शांतिसागरके समीप ही छाणी निवासी, आचार्य शांतिसागरने अपने संघके साथ उसी समय वर्षायोग धारण किया। स्वाध्यायं कुर्वता तत्र धर्मध्यानं सुदुर्लभम् । अव्याः संबोधितास्तेन वर्षायोगो व्यतीयत ॥१०॥ - अर्थ-वहार स्वाध्याय करते अत्यंत दुर्लभ धर्मध्यान करते हुए और प्रतिदिन भव्यजीवोको उपदेश देते हुए उन्होंने वर्षायोग व्यतीत किया। चतुर्विंशतिशतेब्दे षष्ठयधिके महाशुभे । मोक्षं गते जिने वीरे फाल्गुने शुक्लपक्षके ॥९१॥ प्रतिष्ठा जिनबिम्बानां घासीलालेन श्रेष्ठिना। कारिता शुभभावेन प्रतापगढपत्तने ।।९२।। अर्थ-वीरनिर्वाण संवत् चौवीससौ साठके फाल्गुन शुक्ल पक्षमें सेठ घासीलालने अपने प्रतापगढ नगरमें बडे शुभ भावोंसे प्रतिष्ठा कराई थी। विहरन् तत्र देशेषु सूरिः श्रीशान्तिसागरः। भव्यानुपदिशन् प्राप्तः प्रतापगढपत्तनम् ॥१३॥ प्रार्थनावशतस्तत्र संघभक्तस्य श्रेष्ठिनः । दृष्टा महोत्सवं सूरिरहानि कतिचित्स्थितः॥
SR No.010578
Book TitleChaturvinshati Jin Stuti Shantisagar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalaram Shastri
PublisherRavjibhai Kevalchand Sheth
Publication Year1936
Total Pages188
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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