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________________ श्रीशान्तिसागरचरित्र । देवेन रोधितेनापि प्रभोः पित्रा कृतस्तदा । विवाहः पितुराजेति स्वीकृतः शिरसा वरम् ॥१९ ___ अर्थ-यद्यपि सातगौडने अपने पितासे बहुत निषेध किया था, तथापि पिताने इनका विवाह कर ही दिया था। इन्होंने पिताकी यह आज्ञा मस्तकपर धारणकर स्वीकार कर ली थी। तस्यां तथापि वांच्छैव स्वप्नेपि न प्रभो रभूत् । जगद्गर्भवेच्छीघ्रमिति लोकस्य चिन्तया ॥२०॥ .. अर्थ- ये सातगौड शीघ्र ही जगतगुरु बने इस प्रकार की लोगोंकी चिंतासे ही क्या मानो उस धर्मपन्नीकी ओर सातगौडकी स्वप्नमें भी कभी इच्छा नहीं हुई थी। ज्ञात्वा भार्या गता स्वर्गमित्ययं सातगौडकः । निजात्मशोधको जातः स्वरसस्वादकोपि च ॥२१ अर्थ-- मेरी पत्नीका स्वर्गवास होगया है, इन समाचारोको जानकर सातगौड पाटील अपने आत्माकी तलाशमें लग गये और अपने आत्मासे उत्पन्न हुए रसका आस्वादन करने लगे। अनादि भवभोगेभ्यो बंधुवर्गाच्छरीरतः । सातगोडो विरक्तोऽभूदात्मधर्मप्रकाशकः ॥२२॥ ____ अर्थ-वह सातगौडपाटील अनादि कालसे चले आये संसारसे, भोगोसे, भाईबंधुओंसे तथा शरीरसे विरक्त होगये
SR No.010578
Book TitleChaturvinshati Jin Stuti Shantisagar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalaram Shastri
PublisherRavjibhai Kevalchand Sheth
Publication Year1936
Total Pages188
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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