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________________ श्रीशान्तिसागरचरित्र । सवको मनके हरण करनेवाला हो जाता है उसीप्रकार सातगौडा भी दक्षिण दिशामें रहकर सबके मनको हरण करता था। यथाभूत्तरुणो भानुस्तथा चरित्रनायकः । तापकारी रविःकिन्तु शान्तः श्रीलात्तगौडकः।१६ अर्थ- दा पहर के समय जिसप्रकार तरुण अवस्थाका धारण करनेवाला सूर्य दैदीप्यमान होता है, उसीप्रकार हमारे चरित्रनायक सातगौड भी तरुण अवस्थामें अत्यंत दैदीप्यमान होते थे । अंतर केवल इतना ही था तरुण अवस्थामें सूर्य संताप देनेवाला होता है और हमारे चरित्रनायक सातगौड अत्यंत शांत थे। यजने याजने दक्षो निजालमार्गशोधकः । स्वाध्यायध्यानयुक्तश्च परोपद्रवनाशकः ॥१७॥ दीनानाथजनव्याधिदुःखदारिद्रनाशकः । इत्येवं गमयन्कालं धर्मराज इवाबभौ ॥१८॥ ___अर्थ- वह सातगौड पाटील भगवान् जिनेन्द्रदेवकी पूजा करने करानेमें चतुर था, अपने शुद्ध आत्माके स्वरूपकी तलाशमें था, स्वाध्याय ध्यानमें तत्पर था, दूमोंके उपद्रवोंको नाश करनेवाला था, तथा दीन और अनाथ जीवोंके व्याधि दुःख दरिद्रता आदिको नाश करनेवाला था। इसप्रकार धर्मराजके समान कालको व्यतीत करता हुआ वह पिताके घर रह रहा था।
SR No.010578
Book TitleChaturvinshati Jin Stuti Shantisagar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalaram Shastri
PublisherRavjibhai Kevalchand Sheth
Publication Year1936
Total Pages188
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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