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________________ नाम पाठ नव नाय चारु रुद्र चोवीन कामदेव चौदह गुणस्थान ग्याग्छ प्रतिमा श्रावक के १७ नियम बाईस परोपह समव्यसन बाईस अभय दशलक्षण धर्म तीनप्रकारका लोक atre कुलकर बारह प्रसिद्ध पुरुष विदेहक्षेत्रविद्यमान २० तीर्थकर ३६५ ३६४ ३६५ चारप्रकारका दुःख J ६६ कुभोगभूमि पांच मंदरगिरि · 1 ( 5 ) पृष्ठ नाम पाठ ३६४ こ '३६४ ३६५ पन्द्रह कर्मभूमि ३६५ तीस भोगभूमि ३६६ चौबीस वर्षघर पर्वत ३६६ ३६६ संत्तर महानदी ३६७ वीस नाभिगिरि ३६० सात नाक ३६० नक्कोंक ४६ पटल ... ३६७ नग्कोंके ४६ इन्द्रकविल ३६७ नरकोंक श्रेणिबद्धविलोंकी संख्या ३६८ reath प्रकीर्णकविल ३६४ एकहजार कनकाचल ३६४ चालीस दिग्गज पर्वत सौ बार पर्वत साठ विभंगानदी एकसौ भाठ विदेहक्षेत्र बीस यमकगिरि एकमौ सगेवर 1 ३६८ ३६८ मेरुके तीस सगेवर. एकसौसत्तर विजयार्ध पर्वत एकसौसत्तर वृपभगिरि पर्वत चौवीस लोकांतिक देव आठ ऋद्धि P पांच लब्धि दशप्रकारका सम्यग्दर्शन ३६८. ३६८ सात मौनसमय " 16 भोजनके सात अंतराय पांचप्रकार के ब्रह्मचारी. " " श्र ३६६ ३६ રૂ ३६६ ३७०. ३७० ३७१ ३७२ ફર ' पृष्ठ है ૨૭૨ ६७२ ३७२ ३७३. ३०७३ 1 ३७३. ३७३ ३७४. ३७४ 208 ३७४. ३७४ ,३७४ -
SR No.010576
Book TitleVruhhajain Vani Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAjitvirya Shastri
PublisherSharda Pustakalaya Calcutta
Publication Year1936
Total Pages410
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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