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________________ ३७६ वृहज्जैनवाणीसंग्रह ध्याय ५ व्युत्सर्ग ६ ध्यान ऐसे ६ आभ्यन्तर तप, सब । मिलकर वारहप्रकार हैं। २०७-पांचप्रकारका खाध्याय,। * १ वाचना २ पृच्छना ३ अनुपेक्षा ४ आम्नाय ५ धर्मो* पदेश इसप्रकार स्वाध्याय ५ पांचप्रकार है। २०८-दशप्रकारका धर्मध्यान। १ अपायविचय २ उपायविचय ३ जीवविचय ४ । अजीवविचय ५ विपाकविचय ६ विरागविषय ७ भवविचय । ८ संस्थानविचय ९ आज्ञाविचय १० हेतुविचय ऐसे धर्म्यध्यान १० प्रकार है। २०९-सात परमस्थान।। १ सजाति २ सद्गृहीत्व ३ परिव्राज्य ४ सुरेन्द्रता ५ । साम्राज्य ६ परमार्हन्त्य ७ परिनिर्वाण। २१०-ग्यारहप्रकारकी निर्जरा। १ सातिशयमिथ्यादृष्टि २ सम्यग्दृष्टि ३ श्रावक ४ विरत (मुनि) ५ अनंतवियोजक ६ दर्शनमोहक्षपक ७ उपशमक ! ८ उपशांतमोह ९ क्षपक १० क्षीणमोह ११ जिन इसतरह निर्जराके स्थान ११ हैं। २११. मतिज्ञानके ३३६ भेद। मतिज्ञान ४ प्रकार १ अवग्रह २ ईहा ३ अवाय ४ धारणा।। * मतिज्ञान विषयक पदार्थ १२-१ बहु-२ अल्प ३ बहुविध ।
SR No.010576
Book TitleVruhhajain Vani Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAjitvirya Shastri
PublisherSharda Pustakalaya Calcutta
Publication Year1936
Total Pages410
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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